सावन की रिमझिम में दिल को डुबो कर देखता हूं
पुरानी यादें सूखी पड़ी हैं ज़रा भींगो कर देखता हूं.
खुशी से ताल्लुक अपना कुछ ऐसा रहा है मेरे यार
कभी मिलती है तो खुद को सूई चुभो कर देखता हूं.
मुलाकात भी बंद है और ख्वाब में भी आते नहीं
सोच रहा हूं आज खुली आंख सो कर देखता हूं.
थक गया हूं मैं नाकाम हसरतों के दर्द झेल कर
तो अच्छा है अब सारी चाहतें खो कर देखता हूं.
ता-उम्र नेक काम किये पर नाम कुछ हुआ नहीं
फैसला अब कर लिया बदनाम हो कर देखता हूं.
ज़िंदगी जब भी मुसलसल बोर करने लगती है
जो पहले कभी ना किया तब वो कर देखता हूं.
दवा, बातें, वक्त, दुआएं जब कुछ काम आते नहीं
तब अपने जख्मों को आंसू से धो कर देखता हूं.
ज़िंदगी की सूखी फसल शायद हरी हो जाये कल
रोज़ सुबह उम्मीद का एक बीज बो कर देखता हूं.
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