जिनके रंग से खिलती थी मुस्कानें जहाँ की,
उन्ही आँखों में सूख गयीं सारी आशाएँ अब।
कैसे बताएँ जमाने को वजह अपने गम की,
खुद को ही ना मालूम अपने उदासी का सबब।।
जिंदगी जो कभी हुआ करती थी सुनहरी सुबह,
आज वही ठहर कर धूमिल सांझ हो गयी है।
खुशियों के आगमन की उम्मीद ही है बेमानी
इस माने में अब तकदीर ही बांझ हो गयी है।।
कभी हम भी जिया करते थे अपनी शर्तों पर,
भरोसा था तो दिल को बस तदबीरों में।
जिंदगी ने पाठ कुछ यूँ पढाये हैं 'दीपक'
हंसी ढूंढता हूँ मैं अब हाथ की लकीरों में।।
उन्ही आँखों में सूख गयीं सारी आशाएँ अब।
कैसे बताएँ जमाने को वजह अपने गम की,
खुद को ही ना मालूम अपने उदासी का सबब।।
जिंदगी जो कभी हुआ करती थी सुनहरी सुबह,
आज वही ठहर कर धूमिल सांझ हो गयी है।
खुशियों के आगमन की उम्मीद ही है बेमानी
इस माने में अब तकदीर ही बांझ हो गयी है।।
कभी हम भी जिया करते थे अपनी शर्तों पर,
भरोसा था तो दिल को बस तदबीरों में।
जिंदगी ने पाठ कुछ यूँ पढाये हैं 'दीपक'
हंसी ढूंढता हूँ मैं अब हाथ की लकीरों में।।