वह पुरुष जो पूरे घर के लिये खुद को घिसता है,
अपनों बच्चों के लिये कभी रात भर जागता है,
याद कीजिये कि कैसे स्कूल में जब भी कभी कोई क्लास वर्क अधूरा रह जाता तो हम कुछ पन्ने कोरे छोड़ देते थे. और फिर अक्सर वो पन्ने यूं ही कोरे ही रह जाते थे. ऐसा ही डायरी लिखते समय भी होता है. और कुछ ऐसा ही हम सबके साथ ज़िंदगी में भी होता है जब कई अधूरी ख़्वाहिशों के पन्ने इस कारण कोरे ही रह जाते हैं कि वर्तमान की जिम्मेदारियों के बीच हमें समय ही नहीं मिल पाता है.
बस इसी भूमिका के साथ पेश है कुछ पक्तियां उसी कोरे पन्ने की जुबानी...
ज़िंदगी और ख़्वाब के बीच
की कशीदगी में जब
रोज़नामचे का उस दिन का
सफ़्हा स्याह हो जाता है,
और जिम्मेदारियों के तले
दिल अपनी कुछ अदद
नाकामयाब हसरतों से
लापरवाह हो जाता है.
तब वही नामुकम्मल
सा रह गया स्वप्न
फ़र्ज़ को समझाता है,
और यूं तन्हाई में
ज़िन्दगी का वो कोरा पन्ना
मुझसे बतियाता है.
माना...
माना कि
जीवन के तेरे
अध्याय सारे तय थे
और मेरे लिये सोचने को
न फुर्सत न समय थे.
तू सबों के लिये सोचने में
ही बस मशगूल था,
और तुम्हें खुद को
भूल जाना कबूल था.
ज़रा रुक कर
और थोड़ा ठहर कर
अपने लिये भी
कभी तो सोच लेते,
सबके लिये जो यूं
अपने दिन रात लुटाते हो
उनमें से कुछ पल ही
खुद के लिये दबोच लेते.
तुम्हें क्या खबर कि
जब तू कहीं और
यूं ही खोया था,
तब तुझे याद कर
यहां अकेले में
मैं कितना रोया था.
क्या तुम्हें याद भी है
कौन कौन सा पन्ना
कोरा छूट गया है,
यानि कि तू अपनी
किन किन हसरतों से
पूरा रूठ गया है,
पता है मुझे कि
तू सुनेगा नहीं
पर दोहराता हूं,
तेरी अधूरी ख्वाहिशें
ज़रा तुमको ही
याद तो दिलाता हूं.
तुम्हें अपने किसी
रेशमी स्वप्न
की राहों में खोना था,
अपने तन्हाई के कांधे पर
अपना सर रख कर
ज़ार ज़ार रोना था.
कुछ खुशनुमें घटाओं
की फुहारों में भींगना था
तुम्हें चाहतों के संग,
और भरना था ना
तुम्हें खाली पलकों पर
उन अनाहतों के रंग.
अपने शौक को
अपनी कामना
अभिलाषा को
तुझे पिरोना था
और कुछ पुराने संगियों
पुरानी यादों से
रु-बरु होना था
न जाने अपने ऐसे
कितनी ही ख्वाहिशों
से मुंह मोड़ा है,
और कितने पन्नों
को यूं ही तुमने
कोरा ही छोड़ा है.
हां, पता है
पता है मुझे
तू फिर से यूं ही
भावनाओं में बहेगा,
अनबुझी प्यास को
इन ख्वाहिशों को
अपने दिल से ही
कभी नहीं कहेगा,
और तुमने जो मुझे
यूं कोरा छोड़ा है
ये कोरा ही रहेगा.
पर क्या हुआ
कि तेरी ये हसरतें
जो अधूरी हैं,
शायद इनके लिये
ईश्वर की कुछ
खास मंजूरी है,
और यूं भी वो
जिम्मेदारियां जो
निभायी है तूने
ज्यादा जरूरी हैं.
और सही भी है
पूरा न होना चंद
तमन्नाओं का,
ज़िन्दगी नाम ही है
कुछ ऐसी ही
आशनाओं का.
बस इन कोरे पन्नों को
ज़िन्दगी की किताब से
कभी हटने मत देना.
उम्मीद की डोर को
फ़र्ज़ के हाथों से
छूटने मत देना,
और तुम अपने
सपनों को
कभी टूटने मत देना...
कभी टूटने मत देना...!!!
[कशीदगी= खींचतान, रोज़नामचा= डायरी, सफ़्हा = पन्ना, स्याह = काला, अनाहत = असीम, अनंत]
वा क्या बात है, सबकी जिंदगी की ऐसीही हकीकते आपकी कलम यु ही बया करती रहे
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद भाऊ. सह्रदय प्रेरणा के लिये आभार 🙏
Deleteबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना भाई साब , रचना पठन से सारे अधुरे ख़्वाब और असफलताए याद आ गयी परंतु इस रचना ने उन्हें मुकमल करने के लिए ज़हन में जुनून सा लग गया है ।
ReplyDeleteकोरा पन्ना तो एक रहा गया ख़्वाब अनेक रह गए
बहुत बहुत धन्यवाद भाई. आपके द्वारा इन्हीं उत्साह वर्धनों के बलबूते ही लेखनी जारी है 🙏
DeleteWhat a fabulous work 👏👏👏
ReplyDeleteThanks a lot
ReplyDeleteWonderful.. life is to live it again .. with korra panna .... Hats off
ReplyDeleteHeart touching reality Bhaiya🙏
ReplyDeleteThank you so much for reading and responding. 🙏
Deleteजनाब 🪔 आपने उस कोरे पन्ने को बखूबी स्याह कर दिया । बेहद उम्दा!!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद और आभार। आपका उत्साह वर्धन मेरे लिये काफी मायने रखता है भाई
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