Thursday, April 4, 2019

एक ग़ज़ल

नेकी के करम ज़माने के लिये ही हों जरूरी नहीं
दरख़्त लगाओगे तो कभी तेरे भी काम आएगा.

इज़हार-ए-उल्फ़त का दस्तूर पता नहीं तुझे नादान
जबाब आँखों मे ढूंढोंगे तो ज़रूर पैगाम आएगा.

दर्द होता है हर किसी के बात की फिक्र करने से
ज़माने से बनो ज़रा लापरवाह तभी आराम आएगा.

कायदा चाकरी का कुछ यूं हो चला है आजकल
कामयाबी साहब के हिस्से, तेरे सर इल्ज़ाम आएगा.

तन्हा चलो तो रस्ता खत्म नहीं होता सफ़र का
लो दोस्तों को साथ, हंसते हंसते मुकाम आएगा.


दीपक हूं अंधेरा मिटा तो सकता नहीं मगर
अंधेरों से लड़ने वालों में तो मेरा भी नाम आएगा.

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