तेरा ज़िक्र नस नस में मकरंद भर देता है
रंज- ओ- ग़म के सभी दुर्गंध हर लेता है
तेरा तो खयाल भी तेरी तरह बिंदास है
जेहन में आते ही दरवाजे बंद कर देता है.
हर ऐब पर डरता था कि वो छोड़ देगा मुझे
और वो पागल मेरी हर बात पसंद कर लेता है.
सोचा था कि आज तो नहीं सुनुंगा उसकी
न जाने कैसे वो रोज रजामंद कर लेता है.
है इश्क- मोहब्बत की पढा़ई सबसे आला
बस एक ही ठोकर में अक्लमंद कर देता है.
वो कश्ती नहीं हम, डर जायें ऊंची लहरों से
तूफां तो मेरा हौसला और बुलंद कर देता है.
एक दफा सिरहाना मिला उसकी जानु का
दिल अब हर बालिश नापसंद कर देता है.
{मकरंद= फूलों का रस, आला= महान,
जानु= घुटना, बालिश= तकिया }