ज़िंदगी है तो दर्द भी है
चैन-ओ-आराम नहीं है,
पर प्यारी सुबहा भी है
सिर्फ ग़म की शाम नहीं है,
इसलिये मुस्कुराओ और
मुस्कानें बिखेरते रहो
क्यूंकि होठों से दूसरा
बेहतरीन काम यही है!
मन के अन्दर जब कुछ ऐसे विचार भाव आते हैं जो कि कलम को उद्वेलित करते हैं कि उनको कविता, छंद, मुक्तक या यूँ ही एक माला में पिरो दूँ !! कुछ ऐसे ही विचारों का संग्रह किया है यहाँ पर !
ज़िंदगी है तो दर्द भी है
चैन-ओ-आराम नहीं है,
पर प्यारी सुबहा भी है
सिर्फ ग़म की शाम नहीं है,
इसलिये मुस्कुराओ और
मुस्कानें बिखेरते रहो
क्यूंकि होठों से दूसरा
बेहतरीन काम यही है!
हाँ, हम फिर मिलेंगे !
किस्मत की धूप में कुम्हलाए कुसुम
पुन: अवश्य खिलेंगे
हाँ, हम फिर मिलेंगे !
कब? ये तो ज़हन में अभी लापता है
पर कहाँ, कैसे, किस तरह, इतना तो पता है !
जब उतरेगी सूरज की पहली किरण
तो हम ठंडी ठंडी हवा के झोंकें बन
जैसे पवन आती शीतल नदी के अर्श पर
वैसे ही कोमलता से तन मन को स्पर्श कर
दिवस के उस मधुर पहर में
सुकून भरे सुहाने से सहर में
थाम कर एक दूजे का हाथ
और बस धड़कनें करेंगी बात
कब? ये तो ज़हन में अभी लापता है
पर कहाँ, कैसे, किस तरह, इतना तो पता है !
जैसे पत्तियाँ चाय में घुल कर मिल जाते हैं
और दोनों एक ही स्याह रंग में खिल जाते हैं
इतना कि कह ही नही सकते कि कौन बड़ा है
और किसके रंग का असर किस पर चढ़ा है
कुछ वैसे ही सुबह की पहली चाय की प्याली संग
और एक दूसरे में घुले हमारे खुश्बू-ख़याली रंग
अमृत रस भरेंगे आँखों और ज़ुबान में
यूँ महकेंगे इश्क़ में डूबे मीठी मुस्कान में
कब? ये तो ज़हन में अभी लापता है
पर कहाँ, कैसे, किस तरह, इतना तो पता है !
मिट्टी पर पड़ी पहली बारिश की बूँदों के बाद
ज्यों हवा में घुलता सौंधी सी खुश्बू का स्वाद
उन बूँदों जैसे ही उतर जाएँगे प्यासे अधरों पर
और फिर खुश्बू बिखरेगी उमंगों की लहरों पर
सांसों के संवादों की लेकर थाह
संग सुकून की एक गहरी आह
अम्न चैन से सीने से लग जायेंगें
और ग़म के बादल यूं भग जायेंगें
कब? ये तो ज़हन में अभी लापता है
पर कहाँ, कैसे, किस तरह, इतना तो पता है !
दिन के अंत में खामोशी से ना यूँ कल्पनाओं में रहेंगे
ये ख़याल ख्वाब ना शब्द बन बस भावनाओं में बहेंगें
कलम की स्याही बन कोरे पन्नों को भरेंगें
और यूं इस अधूरी कहानी को पूरा करेंगें
हाँ मालूम है भाग्य हौसलों को साध सकती है
हाथों की लकीरें दिल की उम्मीदें बांध सकती है
पर नसीब के महासागर को भी पाट कर
किस्मत की उन तमाम रेखाओं को काट कर
हकीकत में ये सब रंग अपने दामन के हासिल आयेंगीं
और हमारी जीवन रेखाएं यूं आपस में मिल जायेंगीं
अभी हम तुम में हैं और कभी तुम होते हो हम में
यकीन है कि हम बस हम हो रहेंगें अगले जनम में
कब? ये तो ज़हन में अभी लापता है
पर कहाँ, कैसे, किस तरह, इतना तो पता है !
हाँ इतना तो पता है !
शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद भोलाराम को सहसा ही आया याद कि मधु - चंद्र का...