Friday, February 4, 2011

आईना

आज हम सब दोष देते हैं बस ज़माने को,
क्यूँ नहीं कोई तैयार खुद को समझाने को.

हम स्वयं अपना कर्त्तव्य नहीं निभा सकते,
फिर भला दूसरों पर उंगली कैसे उठा सकते.

हम किसी पर भी एक उंगली उठाते हैं जब,
तीन उंगलियाँ खुद की तरफ ही उठती हैं तब.

कोई नहीं राजी स्वयं को आईना दिखाने को,
क्यूँ नहीं कोई तैयार खुद को समझाने को.

मानव जन्म मिला है मुश्किल से हर इंसान को,
पर लगे हैं सब बदलने में ईश्वर के विधान को.

ईश्वर ने तो बनाया हम सबको एक समान,
पर दीवारें खड़ा करने में लगा है हर इंसान.

सब फ़िराक में हैं दूसरों की बस्तियां जलाने को,
क्यूँ नहीं कोई तैयार खुद को समझाने को.

जन हित की बातें लगती आज सबको ढकोसला,
दुनिया हो गयी है सबका सिर्फ अपना ही घोसला.

समाज हितैषी  फिट नहीं आधुनिक ज़माने को,
क्यूँ नहीं कोई तैयार खुद को समझाने को.

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