"अश्रु भरे इन आँखों में, मुस्कानों का डेरा जाने कब होगा,
उम्मीदों के घोंसले में, खुशियों का बसेरा जाने कब होगा,
उजालों की ये किरणें तो रोज छिटक आती हैं कमरों में,
पर इस घर में, मेरी जिंदगी में, सवेरा जाने कब होगा !"
मन के अन्दर जब कुछ ऐसे विचार भाव आते हैं जो कि कलम को उद्वेलित करते हैं कि उनको कविता, छंद, मुक्तक या यूँ ही एक माला में पिरो दूँ !! कुछ ऐसे ही विचारों का संग्रह किया है यहाँ पर !
शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद भोलाराम को सहसा ही आया याद कि मधु - चंद्र का...