"समझौते तो कर लिए जिंदगी से,
खुशी की आस छोड़ न सका,
रिश्ते बस यूँ ही जुड़ गये,
रिश्ते बस यूँ ही जुड़ गये,
पर उनको बुनियाद से जोड़ न सका,
औरों को रस्ता बतला देना तो
औरों को रस्ता बतला देना तो
बहुत ही आसान होता है 'दीपक',
खुद अपनी जिंदगी के चक्रव्यूह
खुद अपनी जिंदगी के चक्रव्यूह
का भेद आज तक तोड़ न सका!"
यह सच है कि हम ऐसे कितने रिश्ते जीते हैं..जिन्हें जीते हुए हरवक्त यह लगता है कि इनके होने का औचित्य क्या है..किन्तु मानव मन, वह हमेशा सोचता है कि कल सबकुछ अच्छा हो जायेगा..
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