Monday, September 24, 2018

ऋणानुबंध

आकर पहुंचे उसी मोड़ पर
जहां से कभी हम चले थे .

सदियों से रतजगी नयनों में
कुछ सुनहरे स्वप्न पले थे,
पर स्वप्न तो स्वप्न ही थे
सत्य से ज्यादा न उजले थे.

आकर पहुंचे उसी मोड़ पर
जहां से कभी हम चले थे .

बरसों से बंजर दिल की धरा पे
अरमां के कुछ अंकुर खिले थे,
ख्वाहिश तो बस खुशी देने की थी
दुनिया समझी कि हम मनचले थे.

आकर पहुंचे उसी मोड़ पर
जहां से कभी हम चले थे .

सांसें धड़कन जुबां सब चुप थे
बात अधरों से नहीं निकले थे,
आंखों से दिल पढ़ लेने वाले
सच कहता हूं तुम पहले थे.

आकर पहुंचे उसी मोड़ पर
जहां से कभी हम चले थे .

दर्द जो कब से जमी पड़ी थी
बस तेरे सामने ही पिघले थे,
बुझ गये वो मन के दीपक
जो चंद रात खुशी से जले थे.

आकर पहुंचे उसी मोड़ पर
जहां से कभी हम चले थे .

दोस्त जिससे हर सुख-दुख बाँटूं
जीवन में अबतक नहीं मिले थे,
साथ बिताए कुछ पल, दिल्लगी से
दिलों के तार जुड़ चले थे.

आकर पहुंचे उसी मोड़ पर
जहां से कभी हम चले थे .

ऋणानुबंध होगा पिछले जन्मों का
जो यूँ हम तुमसे मिले थे,
बंधन बढ़ाने का मौक़ा मिलेगा आगे
बिछड़े हम इसी उम्मीद के तले थे.

आकर पहुंचे उसी मोड़ पर
जहां से कभी हम चले थे .

Thursday, August 23, 2018

इंतज़ार

मेरे मौला सुन ले तू ताकीद मेरी एक और,

आस ही रह गयी खुशियों की दीद मेरी एक और,

मेरे ग़म आये गले मिलने को तन्हाई में मुझसे

कुछ इस तरह गुजर गयी ईद मेरी एक और !!

Wednesday, August 15, 2018

तुम धन्य हो

हे सैनिक तुम धन्य हो पूज्य हो प्रणम्य हो
हे सैनिक तुम धन्य हो पूज्य हो प्रणम्य हो,
तुम हो तो ये धरा सुरक्षित वरना हम नगण्य हों
हे सैनिक तुम धन्य हो पूज्य हो प्रणम्य हो.

मरूभूमि में विजय पताका
पर्वत को भी किया प्रभंजित,
सागर को भी फतह किया है
अंबर भी है हुआ पराजित,

तुमको जो सबल मिले तो अपने शत्रु शून्य हों
हे सैनिक तुम धन्य हो पूज्य हो प्रणम्य हो.

कैसे भूलें 'भगत' 'आजाद' को
रानी लक्ष्मीबाई की झांसी को,
है 'बिस्मिल' और 'अशफाक' की धरती
जहां बालक चूमे फांसी को,

ऐसे वीरों ने जन्म लिया जहां, वहां की भूमि पुण्य हो
हे सैनिक तुम धन्य हो पूज्य हो प्रणम्य हो.

माँ की ममता का रस सूखा
पत्नी ने सुहाग है खोया,
बहन की आंखे रस्ता तकते
बाप का दिल मन में ही रोया,

जो शहीद का करे मानभंग उसकी धता न क्षम्य हो
हे सैनिक तुम धन्य हो पूज्य हो प्रणम्य हो.

तुम हो तो ये धरा सुरक्षित वरना हम नगण्य हों
हे सैनिक तुम धन्य हो पूज्य हो प्रणम्य हो.

ताना- बाना

क्यूं किसी से बात कर के
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.

कहां, कयूं और कैसे बिछुड़ना
किससे किधर और कब जुड़ना
जिंदगी की ये डोर ऊपरवाले का
एक ताना बाना सा लगता है.

क्यूं किसी से बात कर के
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.

कोई नयन पढ़ ले जब मन को
जो नजर समझे हर उलझन को
उन्हीं आंखों में राही जन को
अपना ठिकाना सा लगता है.

क्यूं किसी से बात कर के
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.

ह्रदयों के जब जुड़ने लगे तार
उर में उठे अजब सी एक झंकार
तो चंद पलों का कोई नाता भी
सदियों पुराना सा लगता है.

क्यूं किसी से बात कर के
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.

असली जेवर

  शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद   भोलाराम को सहसा ही आया याद कि मधु - चंद्र का...