क्यूं किसी से बात कर के
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.
कहां, कयूं और कैसे बिछुड़ना
किससे किधर और कब जुड़ना
जिंदगी की ये डोर ऊपरवाले का
एक ताना बाना सा लगता है.
क्यूं किसी से बात कर के
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.
कोई नयन पढ़ ले जब मन को
जो नजर समझे हर उलझन को
उन्हीं आंखों में राही जन को
अपना ठिकाना सा लगता है.
क्यूं किसी से बात कर के
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.
ह्रदयों के जब जुड़ने लगे तार
उर में उठे अजब सी एक झंकार
तो चंद पलों का कोई नाता भी
सदियों पुराना सा लगता है.
क्यूं किसी से बात कर के
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.
कहां, कयूं और कैसे बिछुड़ना
किससे किधर और कब जुड़ना
जिंदगी की ये डोर ऊपरवाले का
एक ताना बाना सा लगता है.
क्यूं किसी से बात कर के
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.
कोई नयन पढ़ ले जब मन को
जो नजर समझे हर उलझन को
उन्हीं आंखों में राही जन को
अपना ठिकाना सा लगता है.
क्यूं किसी से बात कर के
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.
ह्रदयों के जब जुड़ने लगे तार
उर में उठे अजब सी एक झंकार
तो चंद पलों का कोई नाता भी
सदियों पुराना सा लगता है.
क्यूं किसी से बात कर के
ग्रीष्म भी सुहाना सा लगता है.
बढ़िया है
ReplyDeleteधन्यवाद भाई, प्रोत्साहन और आशीष के लिये.
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