बातें सब फँसावा है,
लफ़्ज़ तो दुरावा है,
तुम मेरा मौन पढ़ो,
शब्द तो छलावा है।
जो कहा गया है अक्सर
वो सच कम, सलीका ज़्यादा है,
हर वाक्य में मतलब छुपा
और मुस्कान में बस वादा है।
आवाज़ों की इस भीड़ में
सच तो ख़ामोशी में है,
सुन सको तो, हर दलील
इसकी आगोशी में है।
अर्थ तो आँखों से टपकते हैं,
सांसों में उतर जाते हैं,
शब्द तो बस पर्दा हैं
भाव भीतर मर जाते हैं।
कितनी बार बोलते-बोलते
सच ने हार मान ली,
और मौन ने चुपचाप
पूरी कहानी जान ली।
जो समझे बिना कहे
वही अपना कहलाता है,
वरना हर बोले गए शब्द में
कुछ न कुछ गँवाया जाता है।
तो तुम शोर नहीं, ठहराव पढ़ो,
इन पंक्तियों का यही सार है,
बातें सब फँसावा हैं,
मौन ही असली इज़हार है।
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