रेत में जल कर भी दरिया की ख्वाहिश न थी
दो बूंद की थी चाह सैलाब की फरमाइश न थी
ऊपर वाले कभी अपने फैसले को भी तो देख
तेरे अथाह सागर में कतरे की भी गुंजाइश न थी?
मन के अन्दर जब कुछ ऐसे विचार भाव आते हैं जो कि कलम को उद्वेलित करते हैं कि उनको कविता, छंद, मुक्तक या यूँ ही एक माला में पिरो दूँ !! कुछ ऐसे ही विचारों का संग्रह किया है यहाँ पर !
रिटायरमेंट है अगर एक पारी का अंत तो है एक नई इनिंग की शुरुआत भी, है मंजिल पर पहुंचने का सुखद अहसास तो है कुछ नातों से बिछड़ने की बात भी. याद...
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