हे ईश्वर मुझे इतनी शक्ति देना
कि भयंकर झंझावात में भी मैं
अपने पैरों पर खड़ा रह सकूँ,
हे ईश्वर मुझे इतनी उँचाई देना
कि मुट्ठी में तारे पकड़ के भी
धरातल से मैं जुड़ा रह सकूँ.
मन के अन्दर जब कुछ ऐसे विचार भाव आते हैं जो कि कलम को उद्वेलित करते हैं कि उनको कविता, छंद, मुक्तक या यूँ ही एक माला में पिरो दूँ !! कुछ ऐसे ही विचारों का संग्रह किया है यहाँ पर !
Sunday, July 17, 2011
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