Tuesday, August 16, 2011

ऐतबार


हर सुबहा अकेली हर शाम तन्हा,
तू मुझसे दूर जबसे है,
खता इसमे नहीं तेरी कुछ भी, 
शिकवा तो मुझे रब से है.

तेरी यादों में जी लूँगा मैं,
तू फिकर मत कर मेरे मौला,
दिल में पीड़ा है जो कुछ,
वो बस जुदाई के सबब से है.



तेरी यादों के मनके को
हमने इस दिल में यूँ पिरोया है,
अहसास है घर को भी,
है कुछ कमी कुछ तो खोया है.

ये जो सब समझे बैठे हैं कि
आया मौसम बारिश का,
खुदाया जानता है कि
मेरा दिल आज बेजार रोया है.




कल का हर खुबसूरत पल
अब बस सपना सा लगता है,
हर शायर के गीत का दर्द
दिल को अपना सा लगता है.

या खुदा फिर से एक बार
मुझे बच्चा बना देते तो अच्छा,
क्यूंकि मेरा दीवानापन ज़माने को
एक बचपना सा लगता है.




सुबह की धूप का हो भरोसा
ग़म होता नहीं अमावस रात का,
सुनहरे कल की हो तस्वीर आँखों में
कट जाता वक़्त दर्द-ए-हालात का.

ये समय जुदाई का काट रहा
बस यही सोच के मेरे मौला,
कुछ खुबसूरत है तेरी नियत में,
है ऐतबार दिल को इस बात का.

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