Thursday, July 20, 2023

फिर मुझे मिलना !


तेरे ख़्वाब ऐसे क्यूं भटकते रहते हैं, 

हो एक ठिकाना, फिर मुझे मिलना ! 

सिकंदर होगे तुम पर उलझे हुये हो, 

खुद सुलझ जाना, फिर मुझे मिलना ! 

समझते हैं तेरी नज़रों को यार

जानते हैं उन निगाहों को भी, 

बदन तक आती हैं लौट जाती हैं

दिल तक पहुंच जाना, फिर मुझे मिलना! 

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हमदिली कहीं नहीं, हाँ नज़रिया बहुत है

प्यासी आंखों में आंसू का दरिया बहुत है

बगिया, गलियां, दिल, ख़त, फोन, ख़्वाब

तू इरादा तो कर, मिलने का जरिया बहुत है

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दर्द दफ़्न हो जाते होठों पे ही, समात नहीं होती, 

मसर्रत हासिल यह अपने ही सौगात नहीं होती, 

जिनसे गूफ़्तगू होती है उनसे कह ही नहीं सकते

जो दिल के करीब लगता उससे बात नहीं होती.

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दिल में तेरे क्या है, तू क्यूं जान पाता नहीं?

जानता है जो फिर मुझे क्यूं बतलाता नहीं?

तेरे कशमकश ने बडा़ कलेश कर रखा है, 

रहना नहीं है तो छोड़कर क्यूं जाता नहीं?

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काश मुझे भी हो, ये तेरी जुबां से निकलता है

इश्क की बात पे ही आह अरमां से निकलता है

बस नाम सुनते ही ये तन में गरमी आती है ना

कर के देख पसीना कहाँ कहाँ से निकलता है.

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क्या कहा? वो दिल का बुरा नहीं 

यार, लोगों को क्या मालूम? 

ओ अच्छा! नीयत में ज़फा नहीं

यार, लोगों को क्या मालूम?

दिल के करीब होगे तुम यार

लोग तो परखेंगे बर्ताव पर ही ना

उसका दिल आम रास्ता तो नहीं

यार, लोगों को क्या मालूम?

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Sunday, July 16, 2023

सावन

सावन की रिमझिम में दिल को डुबो कर देखता हूं

पुरानी यादें सूखी पड़ी हैं ज़रा भींगो कर देखता हूं.


खुशी से ताल्लुक अपना कुछ ऐसा रहा है मेरे यार

कभी मिलती है तो खुद को सूई चुभो कर देखता हूं.


मुलाकात भी बंद है और ख्वाब में भी आते नहीं

सोच रहा हूं आज खुली आंख सो कर देखता हूं.


थक गया हूं मैं नाकाम हसरतों के दर्द झेल कर

तो अच्छा है अब सारी चाहतें खो कर देखता हूं.


ता-उम्र नेक काम किये पर नाम कुछ हुआ नहीं

फैसला अब कर लिया बदनाम हो कर देखता हूं.


ज़िंदगी जब भी मुसलसल बोर करने लगती है

जो पहले कभी ना किया तब वो कर देखता हूं.


दवा, बातें, वक्त, दुआएं जब कुछ काम आते नहीं

तब अपने जख्मों को आंसू से धो कर देखता हूं.


ज़िंदगी की सूखी फसल शायद हरी हो जाये कल

रोज़ सुबह उम्मीद का एक बीज बो कर देखता हूं.

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इल्तिजा

मैं तारों से बातें करता था, 

यूं तमाम हर रातें करता था.

दिल में मेरे बस ग़म ही थे, 

खुशी के कारण कम ही थे.

सब की नज़रों में सिकंदर था, 

पर मन भय का एक समंदर था.

दिन रात यूं सबकी फिक्र में था, 

स्वंय खुद से कभी जिक्र न था.

दी सबको तो खुशहाली थी, 

पर खुद तो बदली काली थी.

सपने सब कब से रूखे थे, 

इक आस के जैसे भूखे थे.

ख्वाहिश तो दिल में चंद ही थे, 

पर उम्मीद उनकी भी बंद ही थे.


सुख के पल अपनों को लाई थी, 

पर फिर बाद वही तन्हाई थी.

और वो पल भी अक्सर आता था, 

जब मन का दर्द बहुत गहराता था.

जाल भंवर का यूं छा जाता था

कि बस अंधकार ही भाता था.

सुनता कौन? तो कह ही नहीं पाते थे, 

मर्द था न, आंसू बह भी नहीं पाते थे.


आंखों में सागर की सूखी लहरें छाईं थी, 

और तब नज़रों से तेरी सूरत टकराई थी.

जाने क्या था क्यूं था कि 

तेरी सूरत इतनी भायी थी, 

अनजाने ही दिल तक मेरे

वो निश्छल हंसी समायी थी.

फिर मन में तरंगें अथाह उठी थी, 

तुमसे मिलने की चाह उठी थी.


जिस ईश्वर ने ये रोग लगाया था

उसने ही सुखद संयोग बनाया था.

ये दुनिया इतनी प्यारी होने वाली थी, 

कब सोचा था यूं यारी होने वाली थी.

अवसर आया कुछ मुलाकातों का

कुछ पल चुप और कुछ बातों का, 

मिल कर जुड़ते उन ज़ज्बातों का

सिलसिला फिर जागती रातों का.

तेरे मन में भी कुछ जरुर हुआ था, 

दिल के कोने को शायद मैंने छुआ था.


हां दिल के तार जुड़ चले थे, 

मन आसमान में उड़ चले थे.

बरसों से जो पल चाहे थे, 

तुम संग ही मैंने पाये थे.

वो पल भी फिर अनेक हुये, 

दो थे, जाने कब एक हुये.

कैसे तुम ये जतन कर लेते हो, 

आंखों में ही सब पढ़ लेते हो.

चाहे घिरे ग़म के बादल हों, 

या खुशी का कोई इक पल हो.

तुम्हें ही बताने की चाहत रहती है, 

बता दूं, फिर बड़ी राहत रहती है.


तुम साथ हो तो एक सुकून होता है

ज़िंदगी जीने का एक जूनून होता है

यूं तो बस पानी जैसा ही लगता है

तुम साथ हो तो रगों में खून होता है.

मुझे तुम दिल से कभी दूर ना करना, 

भंवरों में लौटने को मजबूर ना करना.

अब इल्तिजा बस इतनी सी है कि

इक दूजे का केयर करना बंद ना हो, 

कभी दूर भले कितने भी रहें हम

सुख दुख का शेयर करना बंद ना हो.

Monday, July 3, 2023

अश्रु



इंसान रोता कब है....?


जब पीड़ा से मन फटता हो

और बुनने वाला कोई ना हो,

जब दिल के टुकड़े बिखरें हों

और चुनने वाला कोई ना हो,

जब दर्द शब्द में ढ़ल कर भी

यूं कंठ के अंदर सिमटा हो

जब लब कहने को आतुर हों

और सुनने वाला कोई ना हो !

तब दिल के अंदर की पीड़ा

आंखों से बाहर बहती है

मन हल्का होते रहता है

और दुनिया कायर कहती है!


उपरोक्त पंक्तियों में जो भाव है उसके एक विपरीत पहलू पर मैंने कुछ लिखने की कोशिश की है. पढ़िये और अपनी प्रतिक्रिया कमेंट्स में अवश्य बताईये................ 


इंसान कब नहीं रोता है? 


दुख दिल का साझा करने को

जो अपना सा कोई पास हो,

या बंध कुछ ऐसा गहरा हो

कि दूरी का ना अहसास हो


जब दर्द की सर्द सी आहों से

मुख से कोई बोल नहीं फूटे

पर वो बूझ जायेगा नज़रों से

इसका दिल को विश्वास हो !


गर कोई हाथ पकड़ने वाला हो

या कोई मन को पढ़ने वाला हो.

आंखों सासों के रिश्ते से

यूं पीर सभी कम रहता है, 

जब यार कोई संग ऐसा हो

फिर कहां कोई ग़म रहता है !!



असली जेवर

  शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद   भोलाराम को सहसा ही आया याद कि मधु - चंद्र का...