इंसान रोता कब है....?
जब पीड़ा से मन फटता हो
और बुनने वाला कोई ना हो,
जब दिल के टुकड़े बिखरें हों
और चुनने वाला कोई ना हो,
जब दर्द शब्द में ढ़ल कर भी
यूं कंठ के अंदर सिमटा हो
जब लब कहने को आतुर हों
और सुनने वाला कोई ना हो !
तब दिल के अंदर की पीड़ा
आंखों से बाहर बहती है
मन हल्का होते रहता है
और दुनिया कायर कहती है!
उपरोक्त पंक्तियों में जो भाव है उसके एक विपरीत पहलू पर मैंने कुछ लिखने की कोशिश की है. पढ़िये और अपनी प्रतिक्रिया कमेंट्स में अवश्य बताईये................
इंसान कब नहीं रोता है?
दुख दिल का साझा करने को
जो अपना सा कोई पास हो,
या बंध कुछ ऐसा गहरा हो
कि दूरी का ना अहसास हो
जब दर्द की सर्द सी आहों से
मुख से कोई बोल नहीं फूटे
पर वो बूझ जायेगा नज़रों से
इसका दिल को विश्वास हो !
गर कोई हाथ पकड़ने वाला हो
या कोई मन को पढ़ने वाला हो.
आंखों सासों के रिश्ते से
यूं पीर सभी कम रहता है,
जब यार कोई संग ऐसा हो
फिर कहां कोई ग़म रहता है !!
Kisi rote hue insan ko fir se muskurane ki ek vajah de di aapne apne in shabdon se....!! 💜 Prerna dene ke liye shukriya...!!
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