शबरी बन अनूठा दुलार भी करती है,
सीता बन सब स्वीकार भी करती है,
नारी को अबला मत समझना कभी
चंडी बन दुर्जन संहार भी करती है !
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समता की दुहाई, बराबरी का रोना,
'नारियाँ हैं आगे', 'लड़कियाँ हैं सोना',
अपना सम्मान नहीं चाहती तू खोना,
पर खुद के घर में लड़का ही होना?
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नारियों की इज़्ज़त जो करते तुम फ़ना,
हे अधम, इक बात ज़रूर याद रखना,
जिस ईश्वर की करते तुम हो पूजा,
उस राम-कृष्ण को नारी ने ही जना !
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नारी दिवस का बस एक दिन,
और वर्ष भर नारी का अपमान !
गर बनाना तुझे स्वर्ग धरा को,
करो हर पल उनका सम्मान !!
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कभी माता तो कभी बहन के रूप में,
कभी पत्नी, कभी बेटी के स्वरूप में,
देती ना संबल जो नारी हर पल,
जल जाता नर जीवन की धूप में !
।। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ।।
ReplyDeleteअर्थात-
जहाँ स्त्रियों का पूजन ( समतुल्यता व सम्मान ) होता है वहाँ देवता रमन ( निवास ) करते है।
Correct Sir
ReplyDeleteअन्तर्मन से नारी के प्रति समर्पित आपका ब्लोग सराहनीय है।
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