Saturday, October 1, 2022

सफ़र

एक मंजिल तय तो दूसरी राह निकलती है

सच है कि ज़िंदगी तो बस यूं ही चलती है,

पर सफ़र तो तब होता है मुकम्मल यहाँ

जो किसी हमराही को तेरी कमी खलती है.

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सुर्ख आंखों में तू

आब थोड़ा बहने दे

ज़िंदगी को यूं ही

अज़ाब ज़रा सहने दे

बेमक़सद हो तो फिर

क्या मज़ा जीने का

अपना एक तो कोई

ख़्वाब अधूरा रहने दे.


[आब= पानी, अज़ाब= पीड़ा]


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