Sunday, September 25, 2022

स्वर

स्वर हुआ है मुखर मेरे प्रेम गीत का

मन मिला जो मुझे मेरे मनमीत का

तूने नजरें मिला, जो झुका ली नजर,

पाठ मैंने पहला पढ़ा प्रीत के रीत का.


मैं था तन्हा खड़ा कब से इस पार में

आज ज़िन्दगी दिखी मुझे उस पार में

तूने थामी कलाई तो उतरा दरिया में मैं

छोड़ देना नहीं कल को मंझधार में.


आस थी मंजिल की, थी राह तब नहीं

राह पायी, थी मंजिल की चाह जब नहीं

आज राह रहगुजर नज़रे मंजिल भी है

पांव मेंं चुभते कांटों की परवाह अब नहीं.


सुकून मिलता है तुझ संग चंद बातों से

और बिन बातों की भी उन मुलाकातों से

चांदनी ये मेरी चार दिनों की ही सही

है जोश लड़ने का अब अंधेरी रातों से.

No comments:

Post a Comment

your comment is the secret of my energy

असली जेवर

  शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद   भोलाराम को सहसा ही आया याद कि मधु - चंद्र का...