Friday, September 23, 2022

गीत


प्रेम सब से करो हक तो है ये तेरा
हर किसी पे यूं हक पर जताना नहीं
प्यार दिल में रखो, है गलत कुछ नहीं
प्यार उसको भी हो फिर छुपाना नहीं.

मन में अलमस्त सी कुछ तरंगें उठीं
तेरी अंगुली ने जब मेरे तन को छुआ
तूने हाथों में जो हाथ अपना दिया
दिल का हर एक कोना बसंती हुआ.
रुत बसंत ये मेरा फिर न हेमंत बने
तुम ये हाथ फिर मुझसे छुड़ाना नहीं.

कब से था यूं ही गुम मैं किसी सोच में
शब्द कागज़ पर उतरे तू जब दिखा
इस गीत में नज़्म में, है भला मेरा क्या
तूने खुद अपनी सूरत से इसको लिखा.
अब तो शब्दों की गंगा ये बहती रहे
बस तुम नज़रों को मुझसे चुराना नहीं.

थी सुहानी सी रात पर जला चुपचाप
और रौशन यूं दिल को तुम्हारे किया
जो सवेरा हुआ, कुछ हसरतें थीं मेरी
तूने मुझको बुझा कर किनारे किया.
ये है दीपक और इसको तो जलना ही है
इसकी परवाह में दिल जलाना नहीं.

पहले बारिश के बूँदों के क्या थे मज़े
देखकर ही भींगने दौड़ जाते थे हम
बीच में तो है अब उम्र की दहलीज़
बस फुहारों पे ही थमते अपने कदम.
इन बूँदों में है हर एक ग़म की दवा
इनसे डरकर तुम तन को बचाना नहीं.

कभी यशोदा सी तू, कभी रानी कर्णावती
कभी राधा तू दिल की और कभी रुक्मिणी
कहीं माता का आँचल, तो तू है बहना कहीं
संगिनी तू कहीं, कहीं प्यारी बिटिया बनी.
जो भूले तेरे लिये अपनी पहचान को
तुम अहसान उसका यूं भुलाना नहीं.

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