आख़िर कब तक खरगोश द्वारा किए जा रहे उपहासों तथा अपमानजनक टिप्पणियों को कछुआ बर्दाश्त करता. वा तैश में आकर बोला, "क्या तुम्हे पता नही है की मेरे पूर्वज ने पूरी खरगोश जाती का घमंड चकनाचूर कर दिया था? मेरी गति का उपहास उड़ाने से पहले उस रेस की बात याद करो."
"वो बात बहुत पुरानी हो गयी है. यह जमाना मॉडर्न है. "स्लो एंड स्टीडी विन्स द रेस" (जी हाँ आज का खरगोश अँग्रेज़ी भी जानता है) आज के लिए सत्य नही है. वो पुरानी हार अति आत्मविश्वास के कारण हुई थी. अगर तुम्हे लगता है की तुम मुझे हरा सकते हो तो क्यों ना फ़ैसला रेस के मैदान मे हो जाए." खरगोश ने कछुए को चुनौती दी.
कछुए का खून भी गरम था. उसने चुनौती स्वीकार कर ली, "ठीक है. आज से ठीक एक महीने के बाद हमारे बीच दौड़ होगी. खरगोश मन ही मन मुस्कुराने लगा. उसे अपनी जाती पर बहुत दिनों से चला आ रहा कलंक धोने का सुअवसर मिल गया था. ऐसा कर वा ना सिर्फ़ अमर हो जाएगा बल्कि नया इतिहास लिख सकता है, यह सोचकर उसकी खुशियों का ठिकाना ना था.
जोश मे आकर कछुए ने खरगोश की चुनौती तो स्वीकार कर ली थी परंतु अब उसके पसीने छूट रहे थे. उसे इस वास्तविकता का अहसास था की बिना खरगोश की ग़लती के उसका रेस जीतने की बात सोचना वैसा ही है जैसा की भारत का ओलंपिक मे स्वर्ण जीतना. अब उसकी सारी आशाएँ इसी बात पर टिकी थी की खरगोश फिर से अति आत्मविश्वास मे कोई ग़लती करे.
फिर भी कछुए ने अभ्यास पूरे जोश से आरंभ कर दिया. एक विदेशी प्रशिक्षक की देख रेख में उसकी पूरी दिनचर्या शुरू हो गयी. उसे विदेशी प्रशिक्षक रखने की प्रेरणा अपने देश के खिलाड़ियों से मिली जो घर की मुर्गी....मेरा मतलब देश के प्रशिक्षकों से प्रशिक्षण लेने में अपना अपमान समझते हैं. कछुए ने अपने खान पान में भी पौष्टिक आहारों पर विशेष ध्यान देना आरम्भ कर दिया था.
खरगोश और कछुए के बीच दौड़ होने की खबर जल्दी ही हर तरफ फैल गयी.पुरानी दौड़ जिसमें कछुए की खरगोश पर जीत सभी ने एक शिक्षाप्रद कहानी के रूप में सबने सुनी अथवा पढ़ी थी. इसलिए इस दौड़ को लेकर सभी लोगों में बहुत उत्सुकता थी.बहुत से लोग जो खुद को नये ख़यालात के समझते थे उनके लिए कछुआ पुराने विचारों का प्रतिनिधित्व करता था. उनके अनुसार आज की तेज रफ़्तार जिंदगी में तेज़ी से आगे बढ़ना ही सफलता का द्वोतक है. वो लोग खरगोश को जीतता हुआ देखना चाहते थे. वहीं तथाकथित पुराने विचार वाले लोगों को यकीन था की आज भी इमानदारी के साथ निरंतर आगे बढ़ने से मंज़िल अवश्य मिलती है. प्रसार माध्यमों में भी इस दौड़ की खूब चर्चा थी.सभी अख़बारों मे यह खबर मुख्य पृष्ठ पर थी.रेडियो तथा सभी टेलिविजन न्यूज़ चैनलों पर इसी से संबंधित समाचार लगातार आ रहे थे. न्यूज़ चैनलों का तो मानो और किसी खबर की ओर ध्यान ही नही जा रहा था. कोई चॅनेल कछुए के पूरे अभ्यास रूटीन पर रिपोर्ट दिखा रहा था, कोई उसके विदेशी प्रशिक्षक से कछुए की जीत की संभावनाओं के बारे में पूछ रहा था तो कोई खरगोश के परिवार के सदस्यों के इंटरव्यू ले रहा था.
एक चॅनेल पर इंटरव्यू के दौरान खरगोश ने दौड़ में अपनी जीत को सिर्फ़ औपचारिकता करार देते हुए कहा की उसके और कछुए के बीच कोई मुकाबला है ही नही. उसने कहा की शक है की कछुआ दौड़ जीतने के लिए शक्तिवर्धक दवा (ड्रग्स) ले सकता है. इसलिए दौड़ के पहले डोप टेस्ट अनिवार्य रूप से होना चाहिए. उसकी बात को मान कर डोप टेस्ट की व्यवस्था कर दी गयी.
इस दौड़ के प्रति लोगों की उत्सुकता के कारण सट्टा बाज़ार में भी इस रेस के भाव खोल दिए गये. लोगों का उत्साह क्रिकेट मैचों से ज़्यादा इस रेस की ओर था. प्रायः सभी लोग खरगोश की जीत पर ही दाँव लगा रहे थे. वैसे लोग जिन्हे "पुराने विचारों" में विश्वास था वो भी कछुए की जीत की भविष्यवाणी तो कर रहे थे पर जीत पर दाँव लगाने से डर रहे थे.
सट्टा बाज़ार के मालिक को यह पता था की अगर खरगोश हार जाए तो फिर उसे कभी सट्टे के व्यापार में रहने की ज़रूरत ना पड़े इतना धन मिल जाएगा. इसी सोच में वो दौड़ के एक दिन के पहले खरगोश से मिलने गया. अपना परिचय देने के बाद बोला, " मैं ये जानता हूँ की यह दौड़ तुम्हारे लिए प्रतिष्ठा की दौड़ है. परंतु आज के समाज मे असली प्रतिष्ठा धन को मिलती है. अगर तुम यह दौड़ जान बुझ कर हार जाओ तो मैं तुम्हे इतना धन दूँगा की फिर तुम्हे जिंदगी भर चलने की भी आवश्यकता नही होगी."
"परंतु जानबूझकर हारना तो भ्रष्टाचार है. एक तो ऐसे ही कछुए से हारने के बाद मेरी आँखे नीचीं होगी और फिर भ्रष्टाचार में लिप्त होने से तो मैं किसी को मुँह भी नही दिखा सकूँगा." खरगोश के मन में धन लोभ जागृत हो चुका था.
"ये तो सारा संसार जानता है की तुम कभी भी कछुए को हरा सकते हो. वो अगर अपनी रफ़्तार को ड्रग्स की मदद से दस गुना बढ़ा ले तो भी तुम्हे हरा नही सकता. तुम्हे अपनी बिरादरी के कलंक को ढोने के मौके आगे भी मिल जाएँगे पर करोड़पति बनने का यह सुनहार अवसर फिर नही मिलेगा. और फिर तुम रेस हार कर अपनी हानि करोगे तो यह भ्रष्टाचार कैसे होगा? यहाँ तो लोग दूसरों के हिस्से के धन का घपला करने के बाद भी सर उठा के घूमते हैं. कभी सपने में भी नही सोचते की वो भ्रष्टाचार मे लिप्त हैं. जिन्हे जनता अपने हितों की रक्षा के लिए चुन कर भेजती है और जिन पर जनता के धन की रखवाली की ज़िम्मेदारी होती है वो भी तमाम तरह के व्यभिचार कर के बस अपना घर भरने में लगे रहते हैं. तुम अगर अपना नुकसान करके धन अर्जित करोगे तो यह भ्रष्टाचार कैसे हो सकता है." सत्ता मालिक ने अपना आखरी दाँव खेला.
परंतु खरगोश निर्णय नही कर पा रहा था. उसने पिछले एक महीने से सपने मे अपनी विजयी तस्वीर देखी थी. धन का लोभ किसे नही रहता पर कछुए से हार जाना यह बात उसके गले इतनी जल्दी नही उतर पाएगी यह सट्टा मालिक भी जानता था.
रेस देखने के लिए भारी भीड़ इकट्ठा हुई थी. भीड़ को संभालने के लिए पुलिस प्रंबंध कम पड़ रहे थे. टीवी चॅनेल दौड़ का सीधा प्रसारण कर रहे थे. दौड़ जब शुरू हुई तो खरगोश एक पलक मे काफ़ी आगे निकल गया. कछुआ अपनी मंद गति से आगे बढ़ने लगा, इस उम्मीद में की शायद खरगोश रास्ते में उसे कहीं सोता हुआ मिल जाए. परंतु जब काफ़ी दूरी के बाद उसे खरगोश नज़र नही आया तो उसे अपनी हार की निश्चितता का आभास होने लगा. पर जब वो मंज़िल पर पहुँचा तो खरगोश वहाँ भी नही था. सभी कछुए के जीत के नारे लगाने लगे. कछुए को अपनी जीत पर यकीन नही आ रहा था. पर खरगोश कहाँ था? कछुए की नज़रें उसे ही खोज रही थी. वो उसका पराजित चेहरा देखने को बेचैन हो रहा था.
तभी उसे वा सट्टा मालिक की कार मे बैठा आता हुआ दिखाई दिया. दोनो की नज़रें मिली. कछुए की चहेरे पे विजयी मुस्कान थी पर वो यह नही समझ पा रहा था की खरगोश के चहेरे की मुस्कान का राज क्या है?
अब निर्णय आपको करना है की जीत किसकी हुई? कछुए की या खरगोश की? पर यह याद रखिएगा की आपका निर्णय आपके नैतिक मूल्यांकन का आधार होगा.