Saturday, October 2, 2010

बच्चा रे बच्चा !!

डॅडी ने सोचा देखें बेटा कैसा पढ़ रहा है,
मेरा चिराग भविष्य कैसा गढ़ रहा है.
बेटे का टेस्ट लेने को उसे अपने पास बुलाया,
डरा सहमा देख पहले उसको थोड़ा बहलाया.
बोले- बेटा तुम्हें इसलिए अपने पास बुलाया है,
कि देखूं तूने पढ़ाई में कितना मन लगाया है.
पूछूँगा तुमसे दो-चार सवाल बहुत ही आसान,
उत्तर दे दो सही तो पूरे हों दिल के अरमान.

बेटा बोला- क्या आज सूरज पश्चिम में उग आया है,
या फिर लगता है आपको आज बुखार चढ़ आया है.
लगता नहीं मुझे आप अपने होशो हवास में है,
टेस्ट लेंगे, पता भी है बेटा किस क्लास में है.
बाप शरमाया, सच्चाई सुन परेशानी में पड़ गया,
यह देख बेटे का जोश थोड़ा और भी बढ़ गया.
बोला- मेरे या मम्मी के लिए आप समय ही कहाँ पाते हैं,
ऑफीस से बचा वक़्त कॉलोनी के स्मार्ट आंटीज पे लगाते हैं.

बाप गुस्से पे नियंत्रण रख के बोला- साहेबजादे !
बकबक बंद कर ये अपनी और चुपचाप जवाब दे.
बेटा धीरे से बोला- कैसी बातें करते हो आप,
अगर जवाब दूँगा तो कैसे रहूँगा चुपचाप.
बाप बोला- बहुत हो गया ध्यान से सुन अब,
पहला प्रश्न .- हमारा भारत आज़ाद हुआ कब?

बेटा बोला- वैसे तो प्रश्न आसान है, कूल है,
पर माफ़ करें इसमें एक प्रॅक्टिकल भूल है.
अँग्रेज़ों से हमारा देश सन सैंतालिस मे आज़ाद हुआ,
पर आपको तो पता है क्या क्या उसके बाद हुआ.
आज़ाद तो तब जाके होगा ये भारत देश अपना,
जब पूरा होगा गाँधीजी के राम-राज्य का सपना.

बाप बोला- ठीक है, ठीक है, अब है गणित की बारी,
एक काम को 6 दिन में पूरा करते हैं 8 कर्मचारी,
उसी काम को 16 कर्मचारी कितने दिन में करेंगे पूरा?
बेटा बोला- पिताजी आपका ये प्रश्न ही है अधूरा,
पहले बताओ आप बात ज़रा एक फंडामेंटल,
ये काम यहाँ प्राइवेट है या कि है गवर्मेंटल.
गणित के अनुसार तो चाहिए 3 दिन में पूरा हो जाना,
पर काम सरकारी हुआ तो फिर क्या भरोसा क्या ठिकाना.
सारे सिद्धांत सारा गणित रह जाएगा धरा,
शायद महीने में भी काम ना हो पाए पूरा.

बाप दो ही सवाल  पूछ  कर थक  चुका था,
बेटे के अनोखे जवाब से पूरा पक चुका था.
बोले- चल अब मेरे आख़िरी प्रश्न का उत्तर बता,
इंडिया के नॅशनल स्पोर्ट्स का नाम है तुझे पता?
बेटा बोला- जी हॉकी हुआ करता था कभी,
पर हमारा राष्ट्रीय खेल तो भ्रष्टाचार है अभी.
इस खेल में हमने सारे वर्ल्ड रेकॉर्ड्स तोड़ डाला है,
अरे आज हॉकी के अंदर भी इसी का बोलबाला है.
अगर ये खेल ओलंपिक में शामिल कर लिया जाता,
यक़ीनन सारे के सारे मेडल्स इंडिया ही ले कर आता.
अरे हर कोई इस खेल में लगाता है छक्का-चौका,
बस वही नहीं खेलता है जिसे मिला नही हो मौका.

बाप ने अपनो प्रश्नों का पिटारा यहीं पर समेटा,
बोला तू तो बहुत ही बड़ा हो गया है मेरा बेटा.
बेटा बोला- पिताजी आपकी दुनिया बहुत खराब है,
यहाँ हर चेहरे पर लगा हुआ एक नकाब है.
मैं अपना यह सुख चैन खोना नहीं चाहता,
माफ़ करना पिताजी, मैं बड़ा होना नही चाहता.

12 comments:

  1. behad majedaar aur shikshaprad rachna prastut karne ke liye dhanywaad Deepak bhai... Asha hai aage aap aur bhi aise hi likhte rahenge...

    ReplyDelete
  2. मेरा चिराग भविष्य कैसा गढ़ रहा है.
    इसे भी पढ़े ...... आप ही की है
    http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_3200.html

    ReplyDelete
  3. ...मैं बड़ा नहीं होना चाहता तक आते आते गम्भीर सन्नाटा पसर गया। इस कविता में मंचीयता है। अच्छी लगी।

    ReplyDelete
  4. welcome . bhai sb . a great riddle

    ReplyDelete
  5. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद रचना है|

    ReplyDelete
  7. thanks to all for so much energy boosters in just few hours........

    so much confidence i have got from each of the comments :)

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर पिता पुत्र संवाद। वाकई आज की पीढी अपनी बातों से बुजुर्गों को निरुत्तर कर देते हैं।आभार!

    ReplyDelete
  9. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete
  10. samvad ke bahane kitne hi tathya choo gaye aap!
    sundar lekhan!

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर और काबिले तारीफ। आज के दौर में लोग कैसे होते है,अपनी अकड़ को ही मूल समझ कर जीते है। शिक्षाप्रद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद चाचाजी.. आपके आशीर्वाद स्वरूप ये वचन अनमोल हैं मेरे लिये..

      Delete

your comment is the secret of my energy

असली जेवर

  शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद   भोलाराम को सहसा ही आया याद कि मधु - चंद्र का...