Sunday, September 25, 2022

स्वर

स्वर हुआ है मुखर मेरे प्रेम गीत का

मन मिला जो मुझे मेरे मनमीत का

तूने नजरें मिला, जो झुका ली नजर,

पाठ मैंने पहला पढ़ा प्रीत के रीत का.


मैं था तन्हा खड़ा कब से इस पार में

आज ज़िन्दगी दिखी मुझे उस पार में

तूने थामी कलाई तो उतरा दरिया में मैं

छोड़ देना नहीं कल को मंझधार में.


आस थी मंजिल की, थी राह तब नहीं

राह पायी, थी मंजिल की चाह जब नहीं

आज राह रहगुजर नज़रे मंजिल भी है

पांव मेंं चुभते कांटों की परवाह अब नहीं.


सुकून मिलता है तुझ संग चंद बातों से

और बिन बातों की भी उन मुलाकातों से

चांदनी ये मेरी चार दिनों की ही सही

है जोश लड़ने का अब अंधेरी रातों से.

अभिव्यक्ति

शब्दों में

तुम उतार दो

ह्रदय में

टीस ना रखो !


जो कह दिया

उसे लिखो

कह ना पाये

वो लिखो !


कागज पर

मन उकेर दो

कुछ रंग ही

बिखेर दो !


जग की नहीं तो

खुद पर लिखो

कुछ शब्द ही

मगर लिखो !


किसी बिछड़े

को सदा दो

किसी अपने

को पुकारो !


अश्रु लिखो

मुस्कान लिखो

दिल का ही

बयान लिखो !


कल्पना का

आयाम हो

पर सत्य को

मुकाम दो !


स्वप्न लिखो

यथार्थ लिखो

पर हो जिसका

कोई अर्थ, लिखो !

Friday, September 23, 2022

गीत


प्रेम सब से करो हक तो है ये तेरा
हर किसी पे यूं हक पर जताना नहीं
प्यार दिल में रखो, है गलत कुछ नहीं
प्यार उसको भी हो फिर छुपाना नहीं.

मन में अलमस्त सी कुछ तरंगें उठीं
तेरी अंगुली ने जब मेरे तन को छुआ
तूने हाथों में जो हाथ अपना दिया
दिल का हर एक कोना बसंती हुआ.
रुत बसंत ये मेरा फिर न हेमंत बने
तुम ये हाथ फिर मुझसे छुड़ाना नहीं.

कब से था यूं ही गुम मैं किसी सोच में
शब्द कागज़ पर उतरे तू जब दिखा
इस गीत में नज़्म में, है भला मेरा क्या
तूने खुद अपनी सूरत से इसको लिखा.
अब तो शब्दों की गंगा ये बहती रहे
बस तुम नज़रों को मुझसे चुराना नहीं.

थी सुहानी सी रात पर जला चुपचाप
और रौशन यूं दिल को तुम्हारे किया
जो सवेरा हुआ, कुछ हसरतें थीं मेरी
तूने मुझको बुझा कर किनारे किया.
ये है दीपक और इसको तो जलना ही है
इसकी परवाह में दिल जलाना नहीं.

पहले बारिश के बूँदों के क्या थे मज़े
देखकर ही भींगने दौड़ जाते थे हम
बीच में तो है अब उम्र की दहलीज़
बस फुहारों पे ही थमते अपने कदम.
इन बूँदों में है हर एक ग़म की दवा
इनसे डरकर तुम तन को बचाना नहीं.

कभी यशोदा सी तू, कभी रानी कर्णावती
कभी राधा तू दिल की और कभी रुक्मिणी
कहीं माता का आँचल, तो तू है बहना कहीं
संगिनी तू कहीं, कहीं प्यारी बिटिया बनी.
जो भूले तेरे लिये अपनी पहचान को
तुम अहसान उसका यूं भुलाना नहीं.

Tuesday, September 6, 2022

तेरी याद आती है

 

होंठों की जो वो रौनक तुम्हारे साथ जाती है

आंखों में ये चमक तेरे आने के बाद आती है

मुस्कान यूं फीकी पड़ी जो तेरे दरस के बिन

खुशी का ज़िक्र होता है तो तेरी याद आती है !


ये मीठा दर्द दिल का तेरे इश्क की मोहलत है

नूर ये चेहरे का मेरा भी तुम्हारे ही बदौलत है

तू मेरी नहीं है और न कोई हक मेरा तुम पर

तेरी मूरत जो दिल में है वो बस मेरी दौलत है !


फकीरी कितनी भी सच्ची हो अमीरी जीत जाती है

प्यार और मोहब्बत सदा ही रईसी से मात खाती है

किस्सा आज का ही नहीं, धरा का है ये सदियों से

शशि के इश्क की ना कद्र, चक्कर रवि के लगाती है !


तबियत मिली ऐसी संग धारा बहना ही नहीं भाया

सोहबत ही रही ऐसी भीड़ में रहना ही नहीं आया

काबिलियत सारी पायी थी हमने कामयाब होने की

बात बस इतनी थी ढंग से झूठ कहना भी नहीं आया !


तय ठिकाना तेरा, तू वहीं जायेगा

आंखों के आगे फिर तू नहीं आयेगा

अपने सीने में घर जो बनाया तेरा

अब यहां से तो वो न कहीं जायेगा !


खुशी न देख जिसकी, मुस्कान मेरा रूठ गया

रतजगे उसके देख, मेरा नींद से नाता छूट गया,

फिर भी मांगा मुझसे उसने वादा जो भरोसे का

खुद अपने पर से ही तब, भरोसा मेरा उठ गया !


यूं ना किसी की नींद, किसी का चैन तुम्हें हरना था

प्यार साथ तो था तेरे, क्यूं किसी और पे मरना था,

जो पूछा उसने सवाल तो बताओ क्या गलत पूछा

पगले तुम्हें ज़रा तो सोच समझकर इश्क करना था !






असली जेवर

  शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद   भोलाराम को सहसा ही आया याद कि मधु - चंद्र का...