Thursday, January 19, 2023

सुकून

आज फिर दिल ने कहा कि कुछ लिखूं मैं

लिखते रहने वालों की फेहरिस्त में दिखूं मैं, 

हाँ, मन तो कहता है कि लिखो, लिखते रहो

बादलों में छुप के भी सूरज सा दिखते रहो, 

पर दर्द को दर्द सा ही लिखे, बयां कर सके

ऐसी कलम और ऐसी स्याही नहीं मिलती,  

अगर मिल भी जाये, और लिख भी दूं तो, 

बस ताने मिलते हैं, वाहवाही नहीं मिलती !


लिखता हूंँ मैं तो बस दिल की खुशी के लिये

जो एक भी चेहरा खिले, उनकी हंसी के लिये, 

ज़माना भले इस गुलशन से बस शूल चुनता है

कोई तो है जो बड़े शौक से ज़िक्रे गुल सुनता है,

आंखों की चमक उनकी ख़्वाहिश का गवाह है

और फिर तो लाख तानों की भी किसे परवाह है,

शायद ये शब्द किसी के रगों में तो खून देता है

लिखता रहूंगा क्यूंकि यही मुझे सुकून देता है !

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