Sunday, January 8, 2023

कभी सहर न हुई

रात काली थी कब से, कभी सहर न हुई

जाना सबको, खुद से पहचान मगर न हुई

खुशी की तलाश में तो रहा मैं सदा ही

पर जाने क्यों वो कभी मेरी नज़र न हुई ! 


उसकी राह को मेरी आँखें तकती रही

पर उसको ख्याल कभी मेरी डगर न हुई !


सबको बताता जिंदगी जीने का फलसफ़ा

बातें पर वो मेरी खुद पर ही असर न हुई !


थी कभी हमें भी हासिल सुकूने नींद हर शब

किसने चुरा ली जो अब ये मुख़्तसर यूं हुई ! 


इश्क़ में तो दवा उसी के पास है जो दर्द दे

किस्मत थी कुछ ऐसी हमें पुर-असर न हुई ! 


मेरी भटकन का अहसास मुझे भी न था

और तूने छू कब लिया उसे, खबर न हुई !!


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