Saturday, January 28, 2023

चंद मुक्तक

१.

ख़लिश तो एक ही है, दर्द का बसेरा नहीं है

दुआ भी बस एक, ख्वाहिशों का डेरा नहीं है

जो मेरा है वो मुझे अपना समझता ही नहीं

और जो अपना समझता है, वो मेरा नहीं है.


२.

हुजूम में रहूं तन्हा, ऐसा जमघट नहीं चाहिये

गर प्यास ना बुझे, वैसा पनघट नहीं चाहिये

हर पल हर दुआ में मांगी ज़न्नत मैंने रब से,

तेरे बगैर मिली ज़न्नत? चल हट! नहीं चाहिये.

                                                      

३.

हाय उनकी नज़रों में मेरा अख़लाक़ होना, 

गाहे बगाहे बस यूं ही ज़रा सा पाक होना,

नुकसान दे गया ये तो मुझको इस कदर

बढ़िया होता इससे अच्छा नापाक होना.


४.

दो राय नहीं इंसां हौसलों से बुलंदी पे चढ़ा है

पर सच है सबकी किस्मत ईश्वर का गढ़ा है

निकली तो एक ही पर्वत से थीं दोनों शिलायें

एक रास्ते में पडा़ है, दूजा मंदिर में खड़ा है.


५.

कहने की वो अदा मिलती है मुश्किल से

सुनकर जिसे हर चेहरे जाते यूं खिल से

बोलते हैं शायर हो, बातें घुमाते रहते हो

सीधा कहें जो तो लगती है बात दिल पे.

1 comment:

  1. शायरी बन आपके अल्फाज बयां हो रहे हैं, जैसे बेजुबा निगाहो से दिल की बात बता रहा है

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