Tuesday, December 31, 2024

असली जेवर

 

शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद

जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद

 

भोलाराम को सहसा ही आया याद

कि मधु-चंद्र का लिया ही नहीं स्वाद

 

बस झट-पट से करके फिर तैयारी

और पहुँच गये वो दोनों कन्याकुमारी

 

मौसम, पर्यटन, दर्शन और भ्रमण

सुहाना था समय, सुखद था क्षण

 

तभी कुछ ऐसा एक दस्तूर हुआ

स्वप्न-महल सब चकनाचूर हुआ

 

छाई वहाँ घटायें आसमान हुआ काला

इंद्रदेव ऐसे बरसे कि सबको धो डाला

 

बारिश के बाद भोलाराम थे भौंचक और मौन

पास खड़ी मैडम से पूछा बहनजी आप कौन

 

हुआ क्या अजूबा भोलाराम जान नहीं पाये

सग़ी पत्नी को ही बेचारे पहचान नहीं पाये

 

बरसात ने सारी लीपापोती को उतार फेंका था

और पत्नीजी को बिना मेकअप आजतक नहीं देखा था

 

हम पाउडर क्रीम से मुखड़े का रंग सजाते हैं

बोटोक्स लेज़र से झुर्रियों को छुपाते हैं

 

Pedicure, Manicure सब कुछ करते हैं सर्च

खाने से ज़्यादा तो सँवरने पे करते हैं खर्च

 

डाइयेटिंग और जिम से एक किलो घटाते हो साल में

अरे मेकअप हटाओ पांच किलो कम कर लो तत्काल मे

 

महंगे परफ्यूम इत्र से बदन को महकाते हैं

बालों की चांदी छुपाने के लिये डाई कराते हैं

 

कितने बाल सफेद हो गये कितने बचे काले

क्यूं केश हैं रूखे से या क्यूं हैं बाल घुंघराले

 

हजार तरकीबें तुमने बालों के लिये कर डाले

यार बिना बाल के भी लगते हम कितने निराले

 

ये उमर ये झुर्रियाँ नहीं थकाती हैं चेहरे को

मुस्कान ही खूबसूरत बनाती है मुखड़े को

 

आनंद बनाती है तन सुंदर और मन जवान

बाकी सब कुछ है मिथ्या, भ्रम और अज्ञान

 

छोड़ो हज़ारों तिकड़म और लाखों के कलेवर

बस याद रखो कि है मुस्कान असली जेवर

 

Saturday, December 7, 2024

दीपक

हर कदम चोट लगी यूं कि चलना भूल गए

अजनबी लगा जो ज़माना, मिलना भूल गए 

अपनी उम्मीदों पर खरे उतरना मुश्किल है

इतनी बार बुझे हैं कि अब जलना भूल गए 

रात

हंसते मुखड़ों पर बह जाओ न ज़ज्बात में

ज़िंदगी उलझी पड़ी है सबके ही हालात में

मुस्कुराके टाल देते दिन में हम यूंही जिन्हें

घेर लेते हैं चौतरफा वो दर्द आकर रात में

मुस्कान

ज़िंदगी है तो दर्द भी है

चैन-ओ-आराम नहीं है, 

पर प्यारी सुबहा भी है

सिर्फ ग़म की शाम नहीं है, 

इसलिये मुस्कुराओ और

मुस्कानें बिखेरते रहो

क्यूंकि होठों से दूसरा

बेहतरीन काम यही है!

लोग

लब खामोश तो पलकें न झुका

आंखें बोले कमाल इन्हें कहने दे

ये आंसू होते हैं वजनदार पानी

मत रख संभाल, इन्हें बहने दे,

लोग कहते तो हैं कि खुश रहो

मगर मजाल कि हमें रहने दें ! 

दर्द

रेत में जल कर भी दरिया की ख्वाहिश न थी

दो बूंद की थी चाह सैलाब की फरमाइश न थी

ऊपर वाले कभी अपने फैसले को भी तो देख

तेरे अथाह सागर में कतरे की भी गुंजाइश न थी? 

असली जेवर

  शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद   भोलाराम को सहसा ही आया याद कि मधु - चंद्र का...