हर कदम चोट लगी यूं कि चलना भूल गए
अजनबी लगा जो ज़माना, मिलना भूल गए
अपनी उम्मीदों पर खरे उतरना मुश्किल है
इतनी बार बुझे हैं कि अब जलना भूल गए
मन के अन्दर जब कुछ ऐसे विचार भाव आते हैं जो कि कलम को उद्वेलित करते हैं कि उनको कविता, छंद, मुक्तक या यूँ ही एक माला में पिरो दूँ !! कुछ ऐसे ही विचारों का संग्रह किया है यहाँ पर !
शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद भोलाराम को सहसा ही आया याद कि मधु - चंद्र का...
बहोत खूब सर
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