Sunday, August 21, 2022

चंद मुक्तक

कलम भी वही थी और शब्द भी कहां बुरे थे

चित्र बेरंग ही थे सारे मेरे, पास रंग तो पूरे थे

नवाज़िश कैसे अदा करुं तेरा बता मुझे तूही

कविता शेर मुस्कान ख्वाब, सब तो अधूरे थे.


ज़िंदगी से परेशां हू पहेलियां यूं न बुझाया कर

गुम हूं अनजान राहों में तू भी न भटकाया कर

ज़माने ने बेवजह दे दिया दर्जा अक्लमंदी का

तू तो इत्मिनान से इस नादां को समझाया कर.


आंखों का आंखों में खोना जादू सबने जानी है

आंखों में डूब जाना इसकी तो अलग कहानी है

आंखों से दिल तक ना पहुंचे दिल की ही बात

आंखों का फिर आंखों से मिलना ही बेमानी है.


ग़म में यूं रोते रहने से बता होना क्या हासिल है

ना तेरे जानिब कस्ल है ये ना ही तू ना-काबिल है

मन को तू फ़तेह कर ले ज़ंग तेरी फिर आधी है

सोच ही तेरा दर्दे दरिया सोच ही तेरा साहिल है.


अलम पर यूं पर्दा न कर दर्द नासूर हो जायेगा

तेरा ग़म मेरे रंज से मिला तो ग़म दूर हो जायेगा

ज़माने की बातों का परवाह ही कयूं करना कभी

उंगलियां जो उठेगीं तो तू भी मशहूर हो जायेगा.

ये पल

मेरे आंखों के वो सुर्ख अहसास

उन्हें पढ़ने को अपनी अमिट आस

लेकर मेरे करीब न आ पाओगे कल

सच में तब बहुत याद आएंगे ये पल


दिल में रखी हर बात जो संभाल के

सामने बैठ यूं आंखों में आंखे डाल के

ना सुना पाउंगा ये बातें, कविता, ग़ज़ल

हां तब बहुत याद आएंगे ये पल


मुझे देख आंखों की वो मासूम चमक

और तुम्हें देख चेहरे की जाहिर रौनक

तेरी मुस्कान, हंसी, शरारत, वो चुहल

सीने से लगा कर रखे हैं सारे ये पल


तेज सांसों में वो धड़कन का डेरा

और गले में उन मंजुल बांहों का घेरा

अधरें वो ललित, मधुर, मृदुल, निश्छल

कितने अनमोल खजानें दे गये ये पल


बिन कहे जो दिल की सुन ली हर सदा

कैसे शुक्रिया कर सकता भला मैं अदा

ख्वाबों में गढ़े थे जो खूबसूरत महल

सोचा भी न था सच होंगे कभी ये पल


जब भी कभी होंगे कुछ दर्द भरे मौसम

आंखें होंगी नम और दिल में होंगे ग़म

छायेंगे जब भी दुश्वारियों के घने बादल

तब मेरा हौसला मेरी ताकत होंगे ये पल

Saturday, August 20, 2022

यकीन कर

सितारे उतर आयेंगें तेरे लिये ज़मीन पर

अंधेरों की फिक्र में न दिल ग़मगीन कर !


ऊपर वाले पे भरोसा नहीं तो ना सही

एक बार ज़रा ख़ुद पर तो यकीन कर !


भटक आया करो तुम मेरे ख्वाबों में

कभी यूं मेरी रात को भी हसीन कर !


खुशियां छलकेगी तुम्हारे भी होठों पर

बस किसी की आँख मत नमकीन कर !


आँखें जो चुरा लेते हो निगाह मिलते ही

मेरे बेगुनाह नज़रों की न यूं तौहीन कर !


हसरतों में रंग भरना तो आसां है दोस्त

बात तो तब हो जो नक़्शे क़दम रंगीन कर !


चाहत-ए-दिल ना मिले तो अफसोस क्यूं

कभी ख़ुदा की नेमत पर भी तस्क़ीन कर !


माना खुशियों की जेब खाली है आज तेरी

दिल को तू ना अपने ज़रा भी मिस्कीन कर !


अपने घर से ही बेगाना हो जायेगा देख

खुद को न यूं तू औरों में तल्लीन कर !


सारी दौलत तेरे सारे ख़ज़ाने बेमानी होंगे

तू अपनी औलाद को गर न ज़हीन कर !


ख़िरद-मंदी के किरदार में थक गया है दिल

चल आ अब कोई नादानी ताज़ातरीन कर !


इश्क़ है तो बस लफ़्ज़ों से ना ज़ाहिर कर

बांहों में भर उसे और फिर मुतमईन कर !

Wednesday, August 17, 2022

हम कुछ नहीं कहते

वर्ष 1958 की फिल्म अदालत में एक खूबसूरत गीत है जिसे राजेन्द्र कृष्ण साहेब ने लिखा और लता मंगेशकर जी ने आवाज दी. इसी गीत के रदीफ़ "हम कुछ नहीं कहते" को आगे बढ़ाते हुये कुछ बंध लिखे हैं.

पहले चार बंध मूल गीत से...


उनको ये शिकायत है
कि हम कुछ नहीं कहते
अपनी तो ये आदत है
कि हम कुछ नहीं कहते.

मजबूर बहुत करता है
ये दिल तो ज़ुबां को
कुछ ऐसी ही हालत है
कि हम कुछ नहीं कहते.

कहने को बहुत कुछ था
अगर कहने पे आते
दुनिया की इनायत है
कि हम कुछ नहीं कहते.

कुछ कहने पे तूफान
उठा लेती है दुनिया
अब इसपे कयामत है
कि हम कुछ नहीं कहते.


अब इसी रदीफ़ को लेकर कुछ बंध लिखे हैं मैंने, वो पेश कर रहा हूं.....


सुकून मिलता है दिल को
तुमको ही बताने में
फिर तुमसे ही ये फितरत क्यूं
कि हम कुछ नहीं कहते.

तुमने तो न देर की
बयां करने में जज़्बात
तुम पर ही क्यूं जुल्मात है
कि हम कुछ नहीं कहते.

अंदाजे बयां कितने हैं
जाने तो है ये तू भी
कशमकश सी लगी मन में है
कि हम कुछ नहीं कहते.

तुमने भी तो पढ़ा होगा
सुना करती हैं दीवारें भी
चार दीवारें हैं यहां, समझो क्यूं
कि हम कुछ नहीं कहते.

अरसे से तमन्ना थी तेरे
दिल के करीब जाने की
पास हो तुम फिर क्या उलझन
जो हम कुछ नहीं कहते.

मालूम है ख़ुदा सुनता है
गर यकीने दिल से कहो तो,
तुझमें ख़ुदा है, खुद पे भरोसा है
पर हम कुछ नहीं कहते?

गर चाहत को लगे पंख
तो चाहे खुला आसमां ही
मेरे ख़्बाव मेरी बात सुन ना ले
सो हम कुछ नहीं कहते.

मेरे शब्द ही कम-कद्र है
या आपके दाद की कमतरता
लगता है अच्छा ही था
कि हम कुछ नहीं कहते.

दिल उड़ने चला है

तेरी आंखों के रंग पढ़ के

मधुर अनुराग में पड़ के

कुछ ख्वाब सुहाने गढ़ के

फिर दिल उड़ने चला है !


मन की उमंगें जान कर

तुम को अपना मान कर

इस रिश्ते को पहचान कर

आज दिल उड़ने चला है !


कोई अपना जब भी रुठा था

एक साथी भी कहीं छूटा था

मासूम ये रोया था, टूटा था

वही दिल उड़ने चला है !


न ऊंचाई का कोई ज्ञान है

न हवाओं के रुख का भान है

ज़रा सोचो कितना नादान है

फिर भी दिल उड़ने चला है !


हौसले भी तो तेरे झुके से थे

तरंगें भी तो कब से रुके से थे

कदम भी तो कितने थके से थे

करामात कि दिल उड़ने चला है !


ग़म के बादल यूं भागे हैं

अरमां कुछ क्यूं जागे हैं

न जाने अब क्या आगे है

जब दिल उड़ने चला है !

दो पल


१.छुटपन के खेल

मिट्टी का खिलौना,

नानी की गोद

मखमली बिछौना.


फूल और तितली

झूलों संग हिचकोले,

कितने थे मीठे वो

आम के टिकोले.


बस मस्ती थी तब

ना ग़म का ख़लल !

काश थम जाते

वो प्यारे दो पल !!


२.स्कूल का बस्ता

भारी वो स्लेट,

सारा टिफिन बांटके

ही भरता था पेट.


टीचर की डांट पे

वो आंखें रुआंसी,

दोस्त मेरा पहला और

वो पहली शाबासी.


छुट्टी की घंटी सुन

खुशियों की हलचल !

काश थम जाते

वो प्यारे दो पल !!


३.तोता मैना कौर

मां का खिलाना

लोरी और थपकी

प्यार से सुलाना.


मेरी हर मुस्कान पे

खुश उसका होना

हल्की सी चपत

फिर खुद ही रोना.


दुनिया थी मेरी

मां का आँचल !

काश थम जाते

वो प्यारे दो पल !!


४.कॉलेज की कैंटीन

यारों का मेला,

क्लास बंक करके

चाय का वो ठेला.


आंखों का मिलना

और थोड़ा शरमाना

हल्की सी मुस्कान

और नज़रें चुराना.


एक झलक पाने को

होना फिर बेकल !

काश थम जाते

वो प्यारे दो पल !!


५.उड़ना नींदों का

खुली आंख सपना,

लुका छिपी इशारे

पहला प्यार अपना.


दिल की वो बातें

होठों पर ना आना

तेरे लिये चिट्ठी

तुझसे ही छुपाना.


ऊंगली के स्पर्श पे

ख्वाबों के महल !

काश थम जाते

वो प्यारे दो पल !!


६.पहली वो ज्वाइनिंग

खुशियां वो अपार,

खजाने सी दौलत

थी पहला पगार.


पहला सेक्शन और

वो ट्रेनिंग के सेशन,

स्वतंत्र जिम्मेदारी और

सफलता का सेलिब्रेशन.


नये कुछ चैलेंजेज

आनंद वो अव्वल !

काश थम जाते

वो प्यारे दो पल !!


७. दरवाजे की दस्तक पे

पापा पापा की पुकार,

गोद में आ चढ़ना

वो प्यार और दुलार.


पोएम सुनाते जब

वो तोतली जुबान,

हर दर्द की दवा

दूर करती थकान.


सुनहरे ये चित्र

हो गये ओझल !

काश थम जाते

वो प्यारे दो पल !!


८. बीत गये काल जो

लगते वो सुहाने,

याद तब आते

वो गुजरे ज़माने.


भविष्य की चाह में

बस सपने संजोना,

अमूल्य वर्तमान को

निराधार यूं खोना.


लौट के न आने

फिर से ये कल

हैं बड़े अनमोल

ये हमारे दो पल

जी लो जी भर के

ये प्यारे दो पल !!

Saturday, August 13, 2022

री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसान होती

मंज़र ये तेरे पहले से कुछ तो पता देते

कल होगी सुबह कैसी ये तो बता देते

कभी ज़रा सी तूभी तो प्री-प्लान होती

री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसान होती


कभी नाम देके नाते को भाव दिये तुमने

भाव मिले कहीं, रिश्ते का नाम लगे ढ़ूंढ़ने

अचरज क्या जो तेरी बांहें, हैं हैरान होती

री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसान होती


तुझको ना यूं इतना मैं उलझाता

पढ़ के उदाहरण खुद ही सुलझाता

तू पाठ्यपुस्तक कोई विज्ञान होती

री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसान होती


जब हौसले दिये चट्टान से, शांत थी हवायें

जब टूटा था दिल, तो तूफां बवंडर उठाये

अपने मुताबिक कभी कदमों में जान होती

री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसान होती


शिकवा है ये खुद से, मैं जताता क्यूं नहीं

प्यार है इतना, ज़माने को बताता क्यूं नहीं

काश ये दुनिया भी इतनी नादान होती

री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसान होती


होंठ रहें खामोश, जब दिल चाहे कहना

मति का ही सुन के, फिर क्यूं बयां करना

दी तूने गर दिल को अलग से ज़ुबां होती

री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसां होती


ये असर ऐसा है सब आपके इरशाद से

करता हूं नज़र इसको आपके हर दाद पे

कविता भला ऐसी आपके बिन कहां होती

री ज़िन्दगी, काश तू ऐसी ही आसां होती !

असली जेवर

  शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद   भोलाराम को सहसा ही आया याद कि मधु - चंद्र का...