मंज़र ये तेरे पहले से कुछ तो पता देते
कल होगी सुबह कैसी ये तो बता देते
कभी ज़रा सी तूभी तो प्री-प्लान होती
री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसान होती
कभी नाम देके नाते को भाव दिये तुमने
भाव मिले कहीं, रिश्ते का नाम लगे ढ़ूंढ़ने
अचरज क्या जो तेरी बांहें, हैं हैरान होती
री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसान होती
तुझको ना यूं इतना मैं उलझाता
पढ़ के उदाहरण खुद ही सुलझाता
तू पाठ्यपुस्तक कोई विज्ञान होती
री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसान होती
जब हौसले दिये चट्टान से, शांत थी हवायें
जब टूटा था दिल, तो तूफां बवंडर उठाये
अपने मुताबिक कभी कदमों में जान होती
री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसान होती
शिकवा है ये खुद से, मैं जताता क्यूं नहीं
प्यार है इतना, ज़माने को बताता क्यूं नहीं
काश ये दुनिया भी इतनी नादान होती
री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसान होती
होंठ रहें खामोश, जब दिल चाहे कहना
मति का ही सुन के, फिर क्यूं बयां करना
दी तूने गर दिल को अलग से ज़ुबां होती
री ज़िन्दगी, तू थोड़ी तो आसां होती
ये असर ऐसा है सब आपके इरशाद से
करता हूं नज़र इसको आपके हर दाद पे
कविता भला ऐसी आपके बिन कहां होती
री ज़िन्दगी, काश तू ऐसी ही आसां होती !
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