मैं तारों से बातें करता था,
यूं तमाम हर रातें करता था.
दिल में मेरे बस ग़म ही थे,
खुशी के कारण कम ही थे.
सब की नज़रों में सिकंदर था,
पर मन भय का एक समंदर था.
दिन रात यूं सबकी फिक्र में था,
स्वंय खुद से कभी जिक्र न था.
दी सबको तो खुशहाली थी,
पर खुद तो बदली काली थी.
सपने सब कब से रूखे थे,
इक आस के जैसे भूखे थे.
ख्वाहिश तो दिल में चंद ही थे,
पर उम्मीद उनकी भी बंद ही थे.
सुख के पल अपनों को लाई थी,
पर फिर बाद वही तन्हाई थी.
और वो पल भी अक्सर आता था,
जब मन का दर्द बहुत गहराता था.
जाल भंवर का यूं छा जाता था
कि बस अंधकार ही भाता था.
सुनता कौन? तो कह ही नहीं पाते थे,
मर्द था न, आंसू बह भी नहीं पाते थे.
आंखों में सागर की सूखी लहरें छाईं थी,
और तब नज़रों से तेरी सूरत टकराई थी.
जाने क्या था क्यूं था कि
तेरी सूरत इतनी भायी थी,
अनजाने ही दिल तक मेरे
वो निश्छल हंसी समायी थी.
फिर मन में तरंगें अथाह उठी थी,
तुमसे मिलने की चाह उठी थी.
जिस ईश्वर ने ये रोग लगाया था
उसने ही सुखद संयोग बनाया था.
ये दुनिया इतनी प्यारी होने वाली थी,
कब सोचा था यूं यारी होने वाली थी.
अवसर आया कुछ मुलाकातों का
कुछ पल चुप और कुछ बातों का,
मिल कर जुड़ते उन ज़ज्बातों का
सिलसिला फिर जागती रातों का.
तेरे मन में भी कुछ जरुर हुआ था,
दिल के कोने को शायद मैंने छुआ था.
हां दिल के तार जुड़ चले थे,
मन आसमान में उड़ चले थे.
बरसों से जो पल चाहे थे,
तुम संग ही मैंने पाये थे.
वो पल भी फिर अनेक हुये,
दो थे, जाने कब एक हुये.
कैसे तुम ये जतन कर लेते हो,
आंखों में ही सब पढ़ लेते हो.
चाहे घिरे ग़म के बादल हों,
या खुशी का कोई इक पल हो.
तुम्हें ही बताने की चाहत रहती है,
बता दूं, फिर बड़ी राहत रहती है.
तुम साथ हो तो एक सुकून होता है
ज़िंदगी जीने का एक जूनून होता है
यूं तो बस पानी जैसा ही लगता है
तुम साथ हो तो रगों में खून होता है.
मुझे तुम दिल से कभी दूर ना करना,
भंवरों में लौटने को मजबूर ना करना.
अब इल्तिजा बस इतनी सी है कि
इक दूजे का केयर करना बंद ना हो,
कभी दूर भले कितने भी रहें हम
सुख दुख का शेयर करना बंद ना हो.