Sunday, December 3, 2023

सुकूने खामोशी

इश्क को दिमाग की कसौटी पे तौलने की जरूरत क्या है

प्रेम- शहद में समझ का नमक घोलने की जरूरत क्या है

कहते हैं जहां मोहब्बत हो भरपूर, निगाहें बात करती हैं

प्यार में गर कोई कमी नहीं तो बोलने की जरूरत क्या है.


सुकूने खामोशी टूट जाती है जब लफ़्ज़ बात करते हैं

लफ़्ज़ों से खामोशियों को टटोलने की जरूरत क्या है.


तेरी नीरवता ही जब सब कुछ बयां कर रही हो यार

फिर मेरी चुप्पी के राज़ खोलने की जरूरत क्या है.


कुछ मुक्तक

जहाँ पर मिलती है दिल को खुशियाँ तमाम

होती है वहीं पर ही ग़म में डूबी काली शाम, 

किस सरकार ने बदलके ज़िंदगी कर दिया? 

भगवान ने तो उलझन रखा था इसका नाम! 

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पल यही, वक्त यही और दौर यही है

जहाँ मिले सुकूं दिल को ठौर वही है

पसंद है अगर कोई तो बता भी दो उसे

किसी के जैसा यहाँ दूसरा और नहीं है !

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संवाद आंखों से हो तो तस्वीर झलक जाती है, 

लफ़्ज़ होठों से उतरें तो फ़िज़ा महक जाती है, 

गुफ़्तगू के नये तौर का ये नतीजा है बरखुरदार

बात करके शाम तलक उंगलियाँ थक जाती हैं.

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फ़लसफ़ा तज़ुर्बे के बिना अधूरा होता है

तज़ुर्बा ज़ख्म के बगैर कहाँ पूरा होता है

आप औरों के किसी काम नहीं आ सकते

अच्छा होना भी यहाँ कितना बुरा होता है

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जो कभी न सोचा ऐसी भी बात देखी है

बिन बादल के भी घनी बरसात देखी है

हर हाल में खुश रहने की आदत है अब

हर रोज़ मैंने ख़्वाहिशों की मात देखी है

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सोचकर इसका अभ्युदय क्यूं होता नहीं

किससे और कब हो, तय क्यूं होता नहीं, 

प्रेम प्रस्फुटित होता है तेरी इच्छा से प्रभु

फिर इसके हिस्से ही समय क्यूं होता नहीं.

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एक अरसा हुआ, एक झलक तो मिले

और झलक यूं मिले अपलक हो मिले

कामना दिल ने कब है किया अतिशय

प्राण आ जाये इतने तलक तो मिले  ! 

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कुछ ख़्वाब सच बनाने की उम्मीद बाकी है

कुछ कर के दिखा जाने की जिद्द बाकी है, 

ये आंखें तुमको नशीली सी दिखती हैं जो, 

इन आंखों में कई ज़माने की नींद बाकी है.

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हक़ इंसानियत का अदा यूंही तमाम करते हुये

बे-अदबी भी मिले तो भी एहतराम करते हुये, 

अच्छा है सदा सबके लिये अच्छा सोचना मगर

थक जाता है इंसान अकेले ये काम करते हुये.

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तुम्हारी ये सुरम्य आंखें रक्ताभ गुलाबी हैं

और इनकी स्मित मुस्कान बड़ी प्रभावी है

कार्डियोलॉजिस्ट के लिये वरदान हो तुम? 

क्यूंकि तुम्हें देख ह्रदयरोग अवश्यंभावी है.

Thursday, July 20, 2023

फिर मुझे मिलना !


तेरे ख़्वाब ऐसे क्यूं भटकते रहते हैं, 

हो एक ठिकाना, फिर मुझे मिलना ! 

सिकंदर होगे तुम पर उलझे हुये हो, 

खुद सुलझ जाना, फिर मुझे मिलना ! 

समझते हैं तेरी नज़रों को यार

जानते हैं उन निगाहों को भी, 

बदन तक आती हैं लौट जाती हैं

दिल तक पहुंच जाना, फिर मुझे मिलना! 

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हमदिली कहीं नहीं, हाँ नज़रिया बहुत है

प्यासी आंखों में आंसू का दरिया बहुत है

बगिया, गलियां, दिल, ख़त, फोन, ख़्वाब

तू इरादा तो कर, मिलने का जरिया बहुत है

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दर्द दफ़्न हो जाते होठों पे ही, समात नहीं होती, 

मसर्रत हासिल यह अपने ही सौगात नहीं होती, 

जिनसे गूफ़्तगू होती है उनसे कह ही नहीं सकते

जो दिल के करीब लगता उससे बात नहीं होती.

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दिल में तेरे क्या है, तू क्यूं जान पाता नहीं?

जानता है जो फिर मुझे क्यूं बतलाता नहीं?

तेरे कशमकश ने बडा़ कलेश कर रखा है, 

रहना नहीं है तो छोड़कर क्यूं जाता नहीं?

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काश मुझे भी हो, ये तेरी जुबां से निकलता है

इश्क की बात पे ही आह अरमां से निकलता है

बस नाम सुनते ही ये तन में गरमी आती है ना

कर के देख पसीना कहाँ कहाँ से निकलता है.

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क्या कहा? वो दिल का बुरा नहीं 

यार, लोगों को क्या मालूम? 

ओ अच्छा! नीयत में ज़फा नहीं

यार, लोगों को क्या मालूम?

दिल के करीब होगे तुम यार

लोग तो परखेंगे बर्ताव पर ही ना

उसका दिल आम रास्ता तो नहीं

यार, लोगों को क्या मालूम?

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Sunday, July 16, 2023

सावन

सावन की रिमझिम में दिल को डुबो कर देखता हूं

पुरानी यादें सूखी पड़ी हैं ज़रा भींगो कर देखता हूं.


खुशी से ताल्लुक अपना कुछ ऐसा रहा है मेरे यार

कभी मिलती है तो खुद को सूई चुभो कर देखता हूं.


मुलाकात भी बंद है और ख्वाब में भी आते नहीं

सोच रहा हूं आज खुली आंख सो कर देखता हूं.


थक गया हूं मैं नाकाम हसरतों के दर्द झेल कर

तो अच्छा है अब सारी चाहतें खो कर देखता हूं.


ता-उम्र नेक काम किये पर नाम कुछ हुआ नहीं

फैसला अब कर लिया बदनाम हो कर देखता हूं.


ज़िंदगी जब भी मुसलसल बोर करने लगती है

जो पहले कभी ना किया तब वो कर देखता हूं.


दवा, बातें, वक्त, दुआएं जब कुछ काम आते नहीं

तब अपने जख्मों को आंसू से धो कर देखता हूं.


ज़िंदगी की सूखी फसल शायद हरी हो जाये कल

रोज़ सुबह उम्मीद का एक बीज बो कर देखता हूं.

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इल्तिजा

मैं तारों से बातें करता था, 

यूं तमाम हर रातें करता था.

दिल में मेरे बस ग़म ही थे, 

खुशी के कारण कम ही थे.

सब की नज़रों में सिकंदर था, 

पर मन भय का एक समंदर था.

दिन रात यूं सबकी फिक्र में था, 

स्वंय खुद से कभी जिक्र न था.

दी सबको तो खुशहाली थी, 

पर खुद तो बदली काली थी.

सपने सब कब से रूखे थे, 

इक आस के जैसे भूखे थे.

ख्वाहिश तो दिल में चंद ही थे, 

पर उम्मीद उनकी भी बंद ही थे.


सुख के पल अपनों को लाई थी, 

पर फिर बाद वही तन्हाई थी.

और वो पल भी अक्सर आता था, 

जब मन का दर्द बहुत गहराता था.

जाल भंवर का यूं छा जाता था

कि बस अंधकार ही भाता था.

सुनता कौन? तो कह ही नहीं पाते थे, 

मर्द था न, आंसू बह भी नहीं पाते थे.


आंखों में सागर की सूखी लहरें छाईं थी, 

और तब नज़रों से तेरी सूरत टकराई थी.

जाने क्या था क्यूं था कि 

तेरी सूरत इतनी भायी थी, 

अनजाने ही दिल तक मेरे

वो निश्छल हंसी समायी थी.

फिर मन में तरंगें अथाह उठी थी, 

तुमसे मिलने की चाह उठी थी.


जिस ईश्वर ने ये रोग लगाया था

उसने ही सुखद संयोग बनाया था.

ये दुनिया इतनी प्यारी होने वाली थी, 

कब सोचा था यूं यारी होने वाली थी.

अवसर आया कुछ मुलाकातों का

कुछ पल चुप और कुछ बातों का, 

मिल कर जुड़ते उन ज़ज्बातों का

सिलसिला फिर जागती रातों का.

तेरे मन में भी कुछ जरुर हुआ था, 

दिल के कोने को शायद मैंने छुआ था.


हां दिल के तार जुड़ चले थे, 

मन आसमान में उड़ चले थे.

बरसों से जो पल चाहे थे, 

तुम संग ही मैंने पाये थे.

वो पल भी फिर अनेक हुये, 

दो थे, जाने कब एक हुये.

कैसे तुम ये जतन कर लेते हो, 

आंखों में ही सब पढ़ लेते हो.

चाहे घिरे ग़म के बादल हों, 

या खुशी का कोई इक पल हो.

तुम्हें ही बताने की चाहत रहती है, 

बता दूं, फिर बड़ी राहत रहती है.


तुम साथ हो तो एक सुकून होता है

ज़िंदगी जीने का एक जूनून होता है

यूं तो बस पानी जैसा ही लगता है

तुम साथ हो तो रगों में खून होता है.

मुझे तुम दिल से कभी दूर ना करना, 

भंवरों में लौटने को मजबूर ना करना.

अब इल्तिजा बस इतनी सी है कि

इक दूजे का केयर करना बंद ना हो, 

कभी दूर भले कितने भी रहें हम

सुख दुख का शेयर करना बंद ना हो.

Monday, July 3, 2023

अश्रु



इंसान रोता कब है....?


जब पीड़ा से मन फटता हो

और बुनने वाला कोई ना हो,

जब दिल के टुकड़े बिखरें हों

और चुनने वाला कोई ना हो,

जब दर्द शब्द में ढ़ल कर भी

यूं कंठ के अंदर सिमटा हो

जब लब कहने को आतुर हों

और सुनने वाला कोई ना हो !

तब दिल के अंदर की पीड़ा

आंखों से बाहर बहती है

मन हल्का होते रहता है

और दुनिया कायर कहती है!


उपरोक्त पंक्तियों में जो भाव है उसके एक विपरीत पहलू पर मैंने कुछ लिखने की कोशिश की है. पढ़िये और अपनी प्रतिक्रिया कमेंट्स में अवश्य बताईये................ 


इंसान कब नहीं रोता है? 


दुख दिल का साझा करने को

जो अपना सा कोई पास हो,

या बंध कुछ ऐसा गहरा हो

कि दूरी का ना अहसास हो


जब दर्द की सर्द सी आहों से

मुख से कोई बोल नहीं फूटे

पर वो बूझ जायेगा नज़रों से

इसका दिल को विश्वास हो !


गर कोई हाथ पकड़ने वाला हो

या कोई मन को पढ़ने वाला हो.

आंखों सासों के रिश्ते से

यूं पीर सभी कम रहता है, 

जब यार कोई संग ऐसा हो

फिर कहां कोई ग़म रहता है !!



Sunday, May 14, 2023

मुस्कान

ज़िंदगी है तो दर्द भी है

चैन-ओ-आराम नहीं है, 

पर प्यारी सुबहा भी है

सिर्फ ग़म की शाम नहीं है, 


इसलिये मुस्कुराओ और

मुस्कानें बिखेरते रहो

क्यूंकि होठों से दूसरा

बेहतरीन काम यही है!

Wednesday, May 10, 2023

इतना तो पता है !


हाँ, हम फिर मिलेंगे !

किस्मत की धूप में कुम्हलाए कुसुम

पुन: अवश्य खिलेंगे

हाँ, हम फिर मिलेंगे !


कब? ये तो ज़हन में अभी लापता है

पर कहाँ, कैसे, किस तरह, इतना तो पता है !

 

जब उतरेगी सूरज की पहली किरण

तो हम ठंडी ठंडी हवा के झोंकें बन

जैसे पवन आती शीतल नदी के अर्श पर

वैसे ही कोमलता से तन मन को स्पर्श कर


दिवस के उस मधुर पहर में

सुकून भरे सुहाने से सहर में

थाम कर एक दूजे का हाथ

और बस धड़कनें करेंगी बात

कब? ये तो ज़हन में अभी लापता है

पर कहाँ, कैसे, किस तरह, इतना तो पता है !

 

जैसे पत्तियाँ चाय में  घुल कर मिल जाते हैं

और दोनों एक ही स्याह रंग में  खिल जाते हैं

इतना कि कह ही नही सकते कि कौन बड़ा है

और किसके रंग का असर किस पर चढ़ा है

कुछ वैसे ही सुबह की पहली चाय की प्याली संग

और एक दूसरे में घुले हमारे खुश्बू-ख़याली रंग


अमृत रस भरेंगे आँखों और ज़ुबान में

यूँ महकेंगे इश्क़ में डूबे मीठी मुस्कान में

कब? ये तो ज़हन में अभी लापता है

पर कहाँ, कैसे, किस तरह, इतना तो पता है !

 

मिट्टी पर पड़ी पहली बारिश की बूँदों के बाद

ज्यों हवा में घुलता सौंधी सी खुश्बू का स्वाद

उन बूँदों जैसे ही उतर जाएँगे प्यासे अधरों पर

और फिर खुश्बू बिखरेगी उमंगों की लहरों पर


सांसों के संवादों की लेकर थाह

संग सुकून की एक गहरी आह

अम्न चैन से सीने से लग जायेंगें

और ग़म के बादल यूं भग जायेंगें

कब? ये तो ज़हन में अभी लापता है

पर कहाँ, कैसे, किस तरह, इतना तो पता है !

 

दिन के अंत में खामोशी से ना यूँ कल्पनाओं में रहेंगे

ये ख़याल ख्वाब ना शब्द बन बस भावनाओं में बहेंगें

कलम की स्याही बन कोरे पन्नों को भरेंगें

और यूं इस अधूरी कहानी को पूरा करेंगें

हाँ मालूम है भाग्य हौसलों को साध सकती है

हाथों की लकीरें दिल की उम्मीदें बांध सकती है


पर नसीब के महासागर को भी पाट कर

किस्मत की उन तमाम रेखाओं को काट कर

हकीकत में ये सब रंग अपने दामन के हासिल आयेंगीं

और हमारी जीवन रेखाएं यूं आपस में मिल जायेंगीं

अभी हम तुम में हैं और कभी तुम होते हो हम में

यकीन है कि हम बस हम हो रहेंगें अगले जनम में

कब? ये तो ज़हन में अभी लापता है

पर कहाँ, कैसे, किस तरह, इतना तो पता है !

हाँ इतना तो पता है !

Wednesday, April 5, 2023

सिफारिश

उसने कोई न चाहत रखी ना कोई ख़्वाहिश करता है

 ना कभी हसरत ही की ना कोई गुज़ारिश करता है,

यार, मेरे अंदर उस के जैसा जाने कौन ये रहता है

मेरे दिल में रह कर भी उसकी सिफारिश करता है.


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दोस्तों के दरम्यां कभी कोई बौन न रहे

बात हो खुल के हर पल कि मौन न रहे, 

आज मिल लो कि कल का भरोसा नहीं

क्या पता कल यहां हम में से कौन न रहे.

Saturday, April 1, 2023

पहेली

कभी मीठी तो कभी कसैली सी है

ये बंद मुट्ठी भी खाली हथेली ही है

प्रश्न इसके तू कितने भी हल कर ले

ज़िन्दगी थी पहेली, पहेली ही है.


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अंधेरी रातों में भी बस उजाले लिखेंगे

चाहे सुबहा तक जलके हम काले दिखेंगे

जगमगाता दीपक तो है ज़माने के लिये

झांक अंदर तो फिर दिल के छाले दिखेंगे.


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अक्ल ने कहा मत देख, फिर भी हमने देख लिया

दिल ने चाहा देख तो दिल का सुनके, देख लिया

इश्क मोहब्बत पागलपन है ऐसा दुनिया कहती थी

समझदारी से ऊब गया तो पागल बनके देख लिया.

Wednesday, February 1, 2023

तेरा खयाल

तेरा ज़िक्र नस नस में मकरंद भर देता है

रंज- ओ- ग़म के सभी दुर्गंध हर लेता है

तेरा तो खयाल भी तेरी तरह बिंदास है

जेहन में आते ही दरवाजे बंद कर देता है.


हर ऐब पर डरता था कि वो छोड़ देगा मुझे

और वो पागल मेरी हर बात पसंद कर लेता है.


सोचा था कि आज तो नहीं सुनुंगा उसकी

न जाने कैसे वो रोज रजामंद कर लेता है.


है इश्क- मोहब्बत की पढा़ई सबसे आला

बस एक ही ठोकर में अक्लमंद कर देता है.


वो कश्ती नहीं हम, डर जायें ऊंची लहरों से

तूफां तो मेरा हौसला और बुलंद कर देता है.


एक दफा सिरहाना मिला उसकी जानु का

दिल अब हर बालिश नापसंद कर देता है.


{मकरंद= फूलों का रस, आला= महान, 

जानु= घुटना, बालिश= तकिया }

Monday, January 30, 2023

there is nothing wrong...


in shedding tears or looking back,

there is nothing wrong,  

as our mistake is the best teacher

to guide us ahead strong


you may be in blues

and sometimes get numb, 

but it's nothing of sort that

should make you succumb


it's only human to be

desolate or feel lost, 

but we must see the present

and live it to the most


strong alone is not godly

and seeking help is not for weak, 

it's only divine to seek support

have someone to speak


leave aside the gadgets

and search in your heart, 

you'll find both hope and help,

saved there as your best part


emotions are not restriction

even when we wish to fly high, 

that gives us the confidence

to reach for the infinite sky


easy for others to say

what was big and what's small, 

you are your own judge

the best one and that's ALL !! 


Saturday, January 28, 2023

चंद मुक्तक

१.

ख़लिश तो एक ही है, दर्द का बसेरा नहीं है

दुआ भी बस एक, ख्वाहिशों का डेरा नहीं है

जो मेरा है वो मुझे अपना समझता ही नहीं

और जो अपना समझता है, वो मेरा नहीं है.


२.

हुजूम में रहूं तन्हा, ऐसा जमघट नहीं चाहिये

गर प्यास ना बुझे, वैसा पनघट नहीं चाहिये

हर पल हर दुआ में मांगी ज़न्नत मैंने रब से,

तेरे बगैर मिली ज़न्नत? चल हट! नहीं चाहिये.

                                                      

३.

हाय उनकी नज़रों में मेरा अख़लाक़ होना, 

गाहे बगाहे बस यूं ही ज़रा सा पाक होना,

नुकसान दे गया ये तो मुझको इस कदर

बढ़िया होता इससे अच्छा नापाक होना.


४.

दो राय नहीं इंसां हौसलों से बुलंदी पे चढ़ा है

पर सच है सबकी किस्मत ईश्वर का गढ़ा है

निकली तो एक ही पर्वत से थीं दोनों शिलायें

एक रास्ते में पडा़ है, दूजा मंदिर में खड़ा है.


५.

कहने की वो अदा मिलती है मुश्किल से

सुनकर जिसे हर चेहरे जाते यूं खिल से

बोलते हैं शायर हो, बातें घुमाते रहते हो

सीधा कहें जो तो लगती है बात दिल पे.

Tuesday, January 24, 2023

सवाल करो या कि ऐतबार करो

कोई एक रास्ता इख़्तियार करो
सवाल करो या कि ऐतबार करो!


जुदा तो नहीं है अपुन में कुछ भी
तुम में नहीं मुझे हम में शुमार करो!


आखिर बिखरना ही तो है एक दिन
करो तो फिर टूट कर प्यार करो!


दस्तरखान पे सिर्फ मीठे से क्या मजा
जानू झूठा सही थोड़ा तो तकरार करो!


इश्क में करते हो शर्तों की तुम बात
इससे अच्छा यार तुम व्यापार करो!


मालूम है मेरे हिस्से नहीं ये खुशियाँ
दिल फिर भी कहे थोड़ा इंतजार करो!


हालात को लेकर उनको जो कोसते हो
अपना काम तुम भी तो बरखुरदार करो!


ये सूरत पर फिदा, तो वो सीरत पर घायल
लफ़्ज़ों की खूबसूरती का भी दीदार करो!


इत्र के वजूद पर महकाते हो जो तुम खुद को
मुस्कान रख होठों पे, खुशबू भरा किरदार करो!


रगों में फिरते जवानी से वाकिफ़ तो हो
मेरी उम्र का जिक्र ना यूं बार बार करो!

Sunday, January 22, 2023

दिल में कहीं एक कोना होता

काश कि दिल में हमारे कहीं एक कोना होता

बंद कर रख लेते उसे किस्मत में जो ना होता! 


खुदा तेरे बंदों की ख़्वाहिशें अधूरी भी न रहती

और ना कभी किसी से बिछड़ने का रोना होता! 


जब तुम आते हो ख़्वाबों में बस यही चाहते हैं

और कोई काम ही नहीं होता बस सोना होता! 


कितना रईस होता आज मैं हर-सू, हर जानिब

ज़िन्दगी में जो मिला था उसे नहीं खोना होता! 


हाय वो मुस्काती आंखें तेरी, लूट लेते हैं दिल सारे

मेरी निगाहों में भी ऐसा ही कोई जादू टोना होता!


बस एक बार उसे छूकर महसूस करना था मुझे

देख लेता फिर मैं अगर कयामत भी होना होता!


गर तमाम चेहरों पर यूं मुखौटे न होते यहाँ पर

इश्क न खेल होता और न दिल खिलौना होता! 

Thursday, January 19, 2023

सुकून

आज फिर दिल ने कहा कि कुछ लिखूं मैं

लिखते रहने वालों की फेहरिस्त में दिखूं मैं, 

हाँ, मन तो कहता है कि लिखो, लिखते रहो

बादलों में छुप के भी सूरज सा दिखते रहो, 

पर दर्द को दर्द सा ही लिखे, बयां कर सके

ऐसी कलम और ऐसी स्याही नहीं मिलती,  

अगर मिल भी जाये, और लिख भी दूं तो, 

बस ताने मिलते हैं, वाहवाही नहीं मिलती !


लिखता हूंँ मैं तो बस दिल की खुशी के लिये

जो एक भी चेहरा खिले, उनकी हंसी के लिये, 

ज़माना भले इस गुलशन से बस शूल चुनता है

कोई तो है जो बड़े शौक से ज़िक्रे गुल सुनता है,

आंखों की चमक उनकी ख़्वाहिश का गवाह है

और फिर तो लाख तानों की भी किसे परवाह है,

शायद ये शब्द किसी के रगों में तो खून देता है

लिखता रहूंगा क्यूंकि यही मुझे सुकून देता है !

Sunday, January 8, 2023

कभी सहर न हुई

रात काली थी कब से, कभी सहर न हुई

जाना सबको, खुद से पहचान मगर न हुई

खुशी की तलाश में तो रहा मैं सदा ही

पर जाने क्यों वो कभी मेरी नज़र न हुई ! 


उसकी राह को मेरी आँखें तकती रही

पर उसको ख्याल कभी मेरी डगर न हुई !


सबको बताता जिंदगी जीने का फलसफ़ा

बातें पर वो मेरी खुद पर ही असर न हुई !


थी कभी हमें भी हासिल सुकूने नींद हर शब

किसने चुरा ली जो अब ये मुख़्तसर यूं हुई ! 


इश्क़ में तो दवा उसी के पास है जो दर्द दे

किस्मत थी कुछ ऐसी हमें पुर-असर न हुई ! 


मेरी भटकन का अहसास मुझे भी न था

और तूने छू कब लिया उसे, खबर न हुई !!


असली जेवर

  शादी के कुछ तीन चार महीने के बाद जब थोड़ा थम गया मन का उन्माद   भोलाराम को सहसा ही आया याद कि मधु - चंद्र का...